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  • बिना वैज्ञानिक वर्तनी के किसी भी भाषा का विकास संभव नहीं

नवगछिया – नवगछिया के जाह्नवी चौक जयमंगल टोला में अखिल भारतीय अंगिका विकास समिति के तत्वधान में अंगिका की वैज्ञानिक वर्तनी पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला का संयोजन अंगिका भाषा के ध्वनि वैज्ञानिक डॉ रमेश मोहन शर्मा ‘आत्मविश्वास’ ने किया. अंगिका भाषा का ध्वनिवैज्ञानिक अध्ययनʼ में यह सिद्ध किया गया है कि प्रत्येक भाषाध्वनि के दो स्वरूप बनते हैं. ज्ञातव्य है कि ध्वनि- उच्चारण की अवस्था में प्राणवायु के निकास के दो मार्ग हैं – मुख और नासिका, किंतु प्राचीन आचार्जो ने केवल मुख की दृष्टि से ही ध्वनियों को वर्गीकृत किया. इसीलिए अं का अनुस्वार आचार्यों की दृष्टि में अयोगवाहʼ हो गया था.

अब अनुस्वार अयोगवाह नहीं, अनुस्वर की मात्रा है , क्योंकि अनुस्वार के उच्चारण में प्राणवायु का निकास नासिका- मार्ग से होता है. डॉ आत्मविश्वास ने कहा कि अ, आ आदि स्वर- ध्वनियों के उच्चारण में प्राणवायु का निकास मुख- मार्ग से होता है जबकि अं ,आं आदि अनुस्वर ध्वनियों के उच्चारण में प्राणवायु का निकास नासिका- मार्ग से होता है. इस प्रकार प्राचीन आचार्यों ने यदि अ, आ आदि भाषाध्वनियों को मौखिक स्वर कहा है.

तो शोधकर्ता ने अं , आं आदि नासिक ध्वनियों कोअनुस्वर ʼ कहा है. जिस प्रकार आकार , इकार आदि स्वर की मात्रा होती है , उसी प्रकार अंकार ,आंकार आदि अनुस्वर की मात्रा है. इस प्रकार अं , कं आदि क्रमशः अनुस्वर और अनुव्यंजन की मात्रा `अनुस्वार ʼ है. अनुस्वर और अनुव्यंजन का सिद्धांत विश्वभाषा की दृष्टि से भी उपयोगी है. इस अवसर पर कवि विनय कुमार दर्शन ने तिलकामांझी विश्वविद्यालय के अंगिका विभाग से वैज्ञानिक वर्तनी लागू करने की मांग की. इस अवसर पर अखिल भारतीय अंगिका विकास समिति के प्रवक्ता हास्य कवि विनय कुमार दर्शन, कवि श्रवण बिहारी, कवि ब्रह्मदेव ब्रह्म, विलक्षण विभूति, अनिल कुमार बेकार, रत्नेश कुमार आदि अन्य भी मौजूद थे.

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