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वैदिक व तांत्रिक विधि से होता हैं पूजन

24 अक्टूबर को होंगी स्थापित और

26 अक्टूबर को विसर्जन

बिहपुर – झंडापुर स्थित दक्षिणेश्वरी आदी काली मां का मंदिर सिद्धशक्ति स्थल व शक्तिपीठ के नाम से विख्यात है.यह काली मां बुढ़िया काली के नाम से विख्यात है.यहां करीब 1700 ईo से मां की पूजा हो रही है।पहले मंदिर कच्ची बना हुआ था.1903 में सुर्खी व चुना से भवन बनाया गया और 1984 में पुनर्निर्माण किया गया।मां की पूजा करने बहुत दूर -दूर से भक्त आते है।मां के मंदिर का इतिहास करीब 350 वर्ष पुराना है.यहां के प्रधान पुजारी पंडित चंद्रमोहन झा उर्फ चानो झा व मुकेश झा ने बताया की बुढ़िया काली मां का पूजा वैदिक एवं तांत्रिक विधि से पूजा होता है.वही पूजा महासमिति के अध्यक्ष अभय कुमार भारद्वाज व धर्मेंद्र कुंवर, सचिव राम मनोहर कुंवर एवं यजमान सत्यम कुंवर उर्फ गुड्डू ने.

बताया की कोलकाता के दक्षिणेश्वरी काली, वर्धमान बंगाल का काली एवं झंडापुर की बुढ़िया काली की निर्माण एक ही बंगाली परिवार के वंशज राजइंदर बंगाली पिता प्राण मोहन बंगाली ने किया था.देश आजाद होने के बाद बंगाली परिवार द्वारा मंदिर को सार्वजनिक कर कुंवर परिवार को देखरेख का जिम्मा दे दिया।बता दें की 24 अक्टूबर की मध्य रात्रि को मां पिंडी पर स्थापित होगी एवं विसर्जन 26 अक्टूबर की संध्या चार बजे चोरहर ढाला के पास पोखर में किया जाएगा.

वही यजमान सत्यम उर्फ गुड्डू,अभिषेक उर्फ छोटू चौधरी , रविराज ,मनोज कुंवर , चंदन कुंवर,संजीव कुमार उर्फ पप्पू ,मनीष व पंकज ने बताया की मां काली के दरबार से कोई भक्त खाली नही लौटता है .भक्तों की मनोकामना पूरा होने बकरे की बलि दी जाती है ।मां के दरबार में दूर -दूर से भक्त आकर मां की पूजा अर्चना करते है .मां की पूजा में ग्रामीण नवयुवक बढ़चढ़ कर भाग लेते है .

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