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नवगछिया – नवगछिया अनुमंडल में नवविवाहित महिलाओं की कठिन परीक्षा के साथ लोकपर्व मधुश्रावणी संपन्न हो गया. जहां भी इस पर्व का आयोजन किया गया, वहां खास कर सुहागिन महिलाओं के लिए सह भोज का भी आयोजन किया गया. सुखमय दांपत्य जीवन के लिए शादी के बाद पहले सावन में इस पर्व को मनाया जाता है. 14 दिवसीय इस पर्व में मुख्य रूप से शिव पार्वती के जीवन को आधार मान कर नव विवाहित महिलाएं 14 दिनों तक नमक रहित भोजन कर विधि विधान से इस पर्व को मानती हैं और शिव पार्वती, नाग नागिन से संदर्भित कथाओं का श्रवण करती हैं.

इस पर्व का अंत नवविवाहिताओं की कठिन परीक्षा से होती है. पान के पत्तों पर दिए की बाती को जला कर कई व्रतियों के कई अंगों को जलाया जाता है. इस परंपरा को टेमी दागना कहते हैं. बुजुर्ग महिलाएं पार्वती देवी, प्रेमा देवी, सुलोचना देवी, सुमित्रा काकी कहती हैं कि कोई भी महिला अपने परिवार का आधार होती है. ऐसे में उनकी जिम्मेदारी समुद्र की भांति होती है. इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेने वाली महिलाओं को सहनशीलता का गुण अवश्य होना चाहिए. तभी तो वह तमाम झंझावातों से लड़ पाएगी.

इसी कारण मधुश्रावणी के अंतिम दिन टेमी दागने की प्रक्रिया की जाती है. यह पर्व मुख्य रूप से नवविवाहित महिलाएं अपने मायके में करती हैं, हालांकि कालांतर में अब ससुराल में भी कई व्रती यह पर्व मनाती हैं. पंडित शंभूनाथ वैदिक ने कहा कि मिथिलांचल का यह प्रमुख त्योहार है. इस पर्व में एक तरफ परिवार के लिये प्रेम, निष्ठा और समर्पण की सीख देता है तो दूसरी तरफ इस पर्व में आंचलिकता की खुशबू आज भी बरकरार है.

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