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ऋषव मिश्रा “कृष्णा”, नवगछिया : बिहपुर वीरपुर सड़क एनएच 106 का इतिहास करीब 500 वर्षों का है. इस सड़क को सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह के प्रचलित सड़क जीटी रोड के तर्ज पर ही सड़क ए आजम कहा जाता था. मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल में शेरशाह सूरी ने एक सैनिक के रूप में अपने विजय अभियान को शुरू किया. जल्द ही उसे सेनापति बना दिया गया और फिर उसे बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गय. 1537 में शेरशाह सूरी ने बंगाल पर कब्जा कर सूरी स्थापित किया. 1539 में शेरशाह ने चौसा की लड़ाई में हुमायूं को पराजित कर दिया. पुनः 1540 में शेरशाह ने हुमायूं को हराकर शेर खान की उपाधि प्राप्त किया और संपूर्ण उत्तर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया.

शेरशाह ने अपने महज 5 साल के कार्यकाल में अपने आप को एक सक्षम सेनापति और प्रभावशाली प्रशासक साबित किया. कहा जाता है कि नई नगरीय प्रणाली को शेरशाह नहीं उत्तर भारत में स्थापित किया जिस परंपरा को सम्राट अकबर ने बखूबी आगे बढ़ाया था. शेरशाह ने अपने साम्राज्य में ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण कराया जिसे उस समय सड़क ए आजम या सड़क बादशाही के नाम से लोग जानते थे. उसी समय बिहपुर से वीरपुर एनएच 106 का निर्माण भी शेरशाह के शासनकाल में ही हुआ था. स्थानीय इतिहासकार कहते हैं कि जीटी रोड के तर्ज पर ही इस सड़क को भी सड़क ए आजम कहा कहते थे. कालांतर में कोसी नदी की वेगवती चंचल धारा ने बिहपुर और मधेपुरा के क्षेत्र में इस सड़क को छिन्न-भिन्न कर दिया. करीब 30 किलोमीटर तक यह सड़क कोसी नदी में खो गई. ब्रिटानिया हुकूमत के समय भी इस सड़क का पुनर्निर्माण करने योजना बनाई गई था. लेकिन पुराने सड़क का मार्ग नहीं मिलने के कारण इस सड़क को अंग्रेजों ने मिसिंग लिंक का नाम दिया. यही कारण है कि बिहपुर वीरपुर एनएच 106 के 30 किलोमीटर वाले इस भाग को एनएच 106 का मिसिंग लिंक कहा जाता है.

  • लगभग 18 वर्ष पहले एनडीए की सरकार में मधेपुरा के बीपी चौक पर हुआ था एनएच 106 का शिलान्यास

पांच जुलाई 2001 को तत्कालीन एनडीए सरकार के भूतल परिवहन राज्य मंत्री भुवन चंद्र खंडुरी की उपस्थिति में भारत सरकार के नागरिक एवं उड्डयन मंत्री सह स्थानीय सांसद शरद यादव ने जिला मुख्यालय के बीपी मंडल चौक पर मार्ग का शिलान्यास किया था. लेकिन केंद्र में एनडीए की सरकार हटते ही यह परियोजना ठंडे बस्ते में चली गयी थी. लेकिन एक बार फिर जब एनडीए सरकार सत्ता में काबिज हुई तो नए सिरे मिसिंग लिंक का डीपीआर बनाया गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना का शिलान्यास किया.

बौद्धकाल में था मुख्य रास्ता

जयरामपुर के गुवारीडीह में पुरातत्व महत्व वाले कई तरह की सामग्री मिलने के बाद जीबी कॉलेज इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष ने कहा कि यह मिसिंग लिंक गुवारीडीह के काफी करीब है. जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 25 सौ वर्ष पहले यानी मौर्यकाल में भी यह रास्ता प्रचलित रहा होगा. जिसका समय समय पर सम्यक विकास हुआ होगा और कालांतर में यह सड़क कोसी में विलीन हो गयी.

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