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केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा आम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का दावा तो करते हैं. परन्तु धरातल पर कुछ भी नहीं दीखता है. गाँव में मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करवाने की केन्द्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी मनरेगा योजना अफसरशाही की भेंट चढ गया है. दशहरा, दीपावली व महापर्व छठ की समाप्ति के बाद प्रतिदिन प्रखंड के विभिन्न गाँवों से रोजी -रोजगार के लिए मजदूरों का पलायन महानगरों की ओर होने लगा.

सैदपुर के किशोर साह, वीरनगर के मनोज राय, हिंद टोली के इंद्रदेव महतो व तिनटंगा करारी के लालचन्द यादव वगैरह ने महानगर के लिये घर से निकलने पर सैदपुर में ऑटो पकडते हुए कहा कि की कहियौं बाबू गाँवो में रहबैय तैय बाल -बच्चा केनाय पोसबैय. जाय केय इच्छा तैय नहींयै करैय छैय.

लेकिन पेट के ख़ातिर जाय लैय पडैय छैय. मजदूरों से यह पूछने पर कि गाँव छोड़कर मजदूरी करने बाहर क्यों जाते हैं? मजदूरों ने बताया कि गाँव में मजदूरी कम मिलती है और काम भी बराबर नहीं मिलता है. बाहर जाने पर काम तो मिलता ही है. मजदूरी भी अच्छी मिल जाती है. जरूरी पर अग्रिम भी मिल जाती है.

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