इंटर की पढ़ाई के बाद से ही स्वामी जी को इलाके के लोग महात्मा कहकर पुकारने लगे, स्वामी जी सरल स्वभाव के साथ मृदुभाषी और आध्यात्म के प्रति प्रखर रहे है। कहा जाता है उस वक्त इलाके में कहीं भी कोई समाजिक कार्य संपन्न कराना होता तो इलाके के लोग महात्मा जी को याद करते थे, शिक्षा की अलख जगाने वाला रामचंद्र इलाके के लोगों के बीच महात्मा के नाम से प्रसिद्ध होता चला गया।
नवगछिया के समाजसेवी बतलाते हैं कि वर्ष 2000 ई. में गुजरात आई भयावह भूकंप में स्वामी अपने स्तर से मदद पहुंचाने का प्रयास करते रहे। किशोरावस्था में समाज के प्रति शिक्षा, समता , एकता भाईचारे का संदेश समर्पित करते रहे। तंत्र मंत्र की अराधना के दौरान वर्ष 2006 ई. में बलिया बेलान कटिहार में स्वामी जी ने काली मंदिर की स्थापना की।
इस दौरान आध्यात्म और संगीत जीवन का हिस्सा हो गया। परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने पहली पुस्तक ध्यान, योग , विज्ञान और रहस्य लिखा , जिसे गुरूभक्त धर्मावलंबी ने खूब सराहा है। स्वामी जी समाज में शिक्षा, समता , संस्कार , संस्कृति आध्यात्म के प्रति जनमानस में जागरूकता फैलाने में जुटे हैं। शिव शक्ति योग पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी आगमानंद जी महाराज आर्थिक रूप से कमजोर लोगों तक मदद पहुंचाने की कोशिश में जुटे रहते हैं।
हिन्दी नववर्ष का आयोजन मार्गदर्शन में होता रहा है। देश के अलग अलग हिस्सों में में स्वामी जी के कार्यक्रम व्याख्यान , शोभा यात्रा,गुरू पादुका पुजन, विभिन्न विषयों पर पुस्तक विमोचन, श्री दुर्गाचरित मानस हिन्दी अनुवादन साथ ही साथ श्री राम कथा, शक्तिचरित, शिवचरित और अन्य देवी-देवताओं से संबंधित कई अन्य विषयों पर समय समय पर कार्यक्रम चलता रहता है। संतों की सेवा का कार्यक्रम स्वामी जी करते दिखाई देते हैं।
स्वामी आगमानंद जी महाराज का परिवार देश के अलग अलग हिस्सों में बढ़ता जा रहा है यहीं कारण है कि गुरू पूर्णिमा के मौके पर बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त शिक्षक, अध्यापक, प्रोफेसर, पंडित, अधिवक्ता, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता, व्यापारी, किसान, राजनेता और सभी क्षेत्रों के लोग इनसे जुड़े रहते हैं। स्वामी जी ने अब तक कई मंदिरों और मूर्तियों की स्थापना और जीर्णोद्धार की है। हर वर्ष एक दर्जन से अधिक पुस्तकों,पत्रिकाओं और अन्य मूल संपादित संस्करणों में कई लेख प्रकाशित करते आ रहे हैं।