भागलपुर। बसंत ऋतु की दस्तक के साथ ही मंदार पर्वत पर स्थित एक अद्भुत शिवलिंग के प्रकट होने से भक्ति का माहौल गूंज उठा है। कहा जाता है कि 500 वर्ष से भी अधिक पुराने इस शिवलिंग के दर्शन से भक्तों में अपार उत्साह है। देवभूमि मंदार पर्वत की महत्ता केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है।
प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार, मंदार पर्वत पर दो दर्जन से अधिक कुंडों का उल्लेख मिलता है, जिनमें मंदार कुंड (वर्तमान में पापहरणी) प्रमुख था। पर्वत के चारों ओर विष्णुपदी, सोम, कपिल, सूर्य और ज्ञानगंगा कुंड जैसे जल स्रोत स्थित थे, जिनमें से कई अब भी विद्यमान हैं। मंदार पर्वत के नीचे 88 सरोवरों की जानकारी मिलती है, जिनमें से अधिकांश आज भी मौजूद हैं। इन सरोवरों के किनारे लगे शिल्पयुक्त पत्थर प्राचीनता के प्रमाण हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, मंदार पर्वत के नीचे कभी विशाल नगर ‘वालिशा’ बसा हुआ था। हालांकि, जानकारी के अभाव में इसके अवशेष समय के साथ नष्ट हो गए, लेकिन अभी भी जमीन के भीतर कई प्रमाण छिपे हैं। साधु-संतों के अनुसार, मंदार पर्वत पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास था, और यह शिव शक्ति का एक प्रमुख केंद्र है।
मंदार पर्वत पर विभिन्न स्वरूपों में 12 शिवलिंगों के दर्शन भक्तों को वर्षों से होते आ रहे हैं, जिनका उल्लेख शिव पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। अर्धनारीश्वर शिवलिंग, काशी विश्वनाथ शिवलिंग सहित अन्य दिव्य स्थलों के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।
स्थानीय साधु उपेंद्र यादव बताते हैं कि मंदार पर्वत का ब्रह्म कमल पुष्प से भरा पोखर वर्षों पहले छोटा था, जो समय के साथ पर्वत की जलधारा से विशाल रूप ले चुका है। कार्तिक मास में यहां भोज-भात की परंपरा रही है, जहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
मंदार पर्वत अपने प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्ता के कारण एक अनूठा तीर्थ स्थल है, जो हिमालय के समान पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है।