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ढोलबज्जा: जिले में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. जिसका अभी तक ना कोई इलाज है, ना ही इस रोगियों को सरकार के द्वारा कोई मदद मिल पा रही है. ज्ञात हो कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक अनुवांशिक बीमारी है. अनुवांशिक कारण नहीं होने पर भी यह बीमारी किसी को भी हो सकती है. इससे शरीर की मांसपेशियों धीरे-धीरे इतना कमजोर हो जाती है कि मांसपेशियां काम करना बंद कर देते हैं. यह बीमारी 5-6 वर्ष के बाद ज्यादातर लड़कों में हीं होते हैं. जो उम्र के साथ-साथ पूरे शरीर में फैलती चली जाती है. जिससे रोगी को अपना संतुलन बनाने में दिक्कत आती है.

बिना सहारे खड़ा होकर चल-फिर भी नहीं पाते हैं. पीठ के बल भी बैठने में दिक्कत होते हैं. रीढ़ की हड्डियां झुकने लगते हैं. जोड़ों में तकलीफ व हृदय संबंधित रोग भी हो जाते हैं. उसके बाद रोगियों की मौत हो जाती है. उक्त बातों की जानकारी देते हुए मध्य विद्यालय ढोलबज्जा के शिक्षक घनश्याम कुमार ने बताया कि- मेरे दो लड़के अनिमेष अमन व अनुराग आनंद समेत कदवा में पांच ऐसे बच्चे हैं, जो इस रोग से ग्रसित हैं. प्रतापनगर कदवा निवासी भोजल सिंह के पुत्र व पप्पू सिंह के भाई की मौत इस बीमारी से हो चुकी है तो, वहीं उसके नाती व भांजे अभी भी इस रोग से ग्रसित हैं. जिले में करीब 50 व राज्य में 618 ऐसे मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोगी अभी भी हमसे जुड़े हुए हैं. सरकार अब तक इस रोग का इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं, ना ही इन सभी रोगियों को उनके द्वारा किसी तरह की मदद की जा रही है. घनश्याम बताते हैं कि- कोलकता के एक वैज्ञानिक सुर्जित सिन्हा ने इस रोग की दवाई खोज निकाली है.

जिसके लिए लैब विकसित करने में उसे करीब 12 लाख खर्च होंगे जिसके लिए सरकार से मदद नहीं मिल पा रही है. उधर अमेरिका के एक सरेप्टर कंपनी ने दवि बनाई है. जिसके तीन खुराक की कीमत करीब 23 करोड़ बताई जा रही है. जिससे इलाज कराना हर किसी को मुश्किल है. सरकार यदि हम सभी को मदद नहीं करती है तो, हमें इच्छा मृत्यु दे. स्थानीय लोगों ने पूरे मामले से अवगत कराते हुए स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को पत्र लिख कर इलाज करवाने की मांग की है.

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