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होली के दिन जहां सभी लोग रंग-गुलाल खेलने में व्यस्त रहते हैं वहीं मिथिला की महिलाएं सप्ता-डोरा पूजा की तैयारी करने में भी व्यस्त रहती हैं। दो माह तक चलने वाला यह विशेष पर्व फाल्गुन मास के पूर्णिमा की रात्रि और चैत्र माह की पहली किरण (परीव) से शुरू होता है एवं वैशाख शुक्ल पक्ष के अंतिम रविवार को समाप्त होता है। इस दो महीने के दौरान महिलाएं प्रत्येक रविवार को किसी एक जगह जमा होकर सप्ता का कथा सुनती हैं और इस दौरान दाएं हाथ की बांह में डोरा (धागा) बांधती हैं।

इस कथा की अगर बात करें तो इसमें कहा गया है कि प्राचीन समय की बात है एक राजा थे जिनका नाम नल था व उनकी पत्नी जिनका नाम दमयंती था। राजा का एक पुत्र जिसका नाम रोहित था। राजा की पुरी प्रजा खुशहाल थी किसी को किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। एक दिन उसके यहां एक ब्रह्मणी आई और वह सपता डोरा बेच रही थी। रानी की दासी आई और उन्होंने सारी बात रानी को बताते हुए बोली की रोहित का एक और भाई हो इसके लिए इस व्रत को करें। रानी ने उनकी बात मान ली और डोरा खरीद लिया। सपता की पूजा होने के बाद उस डोरा को गले में डाल लिया। कुछ दिन बाद राजा की नजर रानी के गले में लटकती डोरा पर गया। उसने रानी से कहा की सोने की माला पहनती नहीं हो और धागे गले में पहन ली हो और धागे को ताेर दिया।

यह देखकर सपता को गुस्सा आया और वह सारी बात अपनी बहन विपता को बताया। विपता यह सुनते ही बोली राजा को धन का घमंड है इसलिए तुम्हारा अपना किया है। मै उसे सबक सिखा दूंगा। इसके बाद से ही राजा की स्थिति दयनीय होने लगती है और एक समय ऐसा आता है जो राजा लोगों को काम दिया करते थे राज महल में भुखमरी के कारण खूद दूसरे के राजा के यहां जाकर नौकर का काम करना पड़ा। कथा के अंत में उन्हें यह एहसास होता है कि हमारी एक गलती ही हमारे हुए दुर्दशा का कारण है। और फिर आत्मग्लानि महसूस होती है फिर सपता माता के कृपा से ही पून: स्थिति में सुधार होती है। इसलिए इस कथा का काफी महत्व है। खासकर वह नाड़ी जिन्हें संतान नहीं है या एक संतान है और दूसरा की अभिलाषा है उन्हें यह कथा जरूर सुनना चाहिए। ऐसे इस कथा को सुनने वाले के घरों में अन्न, धन, वैभव व कृति आदि का वास सदैव रहता है।

वही इस पर्व को लेकर भागलपुर जिले के विभिन्न गाँव में महिलाओं द्वारा पूजा अर्चना किया गया गोपालपुर प्रखंड के गोसाई गांव में कई स्थानों पर पूजा-अर्चना हुई वह महिलाओं ने पूरे नियम निष्ठा के साथ पूजा अर्चना की ।

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