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नवगछिया – मलमास के कारण 19 साल बाद इस बार 7 से 17 जुलाई और फिर 17 से 19 अगस्त तक दो टुकड़ों में यह पर्व मनाया जाएगा

मैथिल ब्राह्मण की नव विवाहिता अपने पति के दीर्घायु के लिए आस्था का पर्व मधुश्रावणी वैसे तो 14 या 15 दिनों का होता है लेकिन इस बार अधिक मास होने के चलते यह तकरीबन डेढ़ महीने तक चलेगा इस बार यह पर्व ऐसा 19 साल बाद हुआ । पति की लंबी उम्र के लिए मनाए जाने वाले यह पर्व 1 महीने से भी अधिक समय तक मनाया जाएगा। मधुश्रावणी की शुरुआत सावन मास कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से होती है जबकि समापन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। इस बार इसकी शुरुआत 7 जुलाई से हो रही है और समापन 19 अगस्त को टेमी दागने के साथ होगा। इस बीच 7 से 17 जुलाई और फिर 17 से.

19 अगस्त तक टुकड़ों में यह मनाया जाएगा मिथिलांचल में सुहाग का अनोखा पर्व मधुश्रावणी सावन मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू हो रहा है। इस पर्व मे मिथिला की नवविवाहिता अपने पति की दीर्घायु के लिए माता गौरी एवं भोलेनाथ की पूजा करते हैं ।पूरे 14 दिनों तक चलने वाला व्रत में बिना नमक का भोजन ग्रहण किया जाता है ।इस पूजा में पुरोहित की भूमिका में भी महिलाएं रहती है । इस अनुष्ठान के पहला और अंतिम दिन वृहद विधि विधान से पूजा होता है । ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है। नई दुल्हन मानो नव्यता जो पहले सपने में पति के लिए व्रत रखती है वह उनकी अग्निपरीक्षा भी लेते हैं।

मधुश्रावणी व्रत पति की रक्षा के लिए महिलाएं यह व्रत करती है। नवविवाहितओं में इस व्रत को लेकर खास उत्साह रहता है। मिथिलांचल का लोक पर्व अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है। परंपरा के अनुसार कोई भी व्रत खंडित नहीं कर सकते हैं। यही वजह है कि मधुश्रावणी व्रत को इस बार यह व्रत लगभग डेढ़ महीने तक रखना होगा। व्रत के दौरान महिलाएं रोजाना बगीचे से फूल और पत्ती चुनती हैं।और उससे बिशहरा मतलब नाग और शिव पार्वती का पूजा करती है। इस पूजा के दौरान नवविवाहिता को 2 दिन नाग देवता की कथा सुनाई जाती है जबकि बाकी 13 दिन के दौरान सावित्री सत्यवान शंकर पार्वती, राम सीता ,राधा कृष्ण ,जैसे देवताओं कथा सुनाई जाती है ।

यह व्रत लगभग नवविवाहित आपने मायके में ही मनाती है। लेकिन इस दौरान वह ससुराल से आया अनाज ही केवल ग्रहण कर सकती है व्रत के दौरान नमक का सेवन पूर्ण रूप से वर्जित है कुछ महिलाएं फलहार करके यह पूरा व्रत रखती है। इस पर्व की मुख्य परंपरा टेमी दागने बहुत ही प्रमुख है। नवविवाहिता को अपनी अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है बिहार के मिथिलांचल की अनोखी परंपरा है इस परीक्षा में नवविवाहिता को उनके घुटने पर जलते दीपक की बाती से घुटनों को जलाया जाता है। सजी-धजी दुल्हन के रूप में विवाहिता उफ़ तक नहीं करती। कहा जाता है कि इस परीक्षा में विवाहिता के घुटने में जितना बड़ा फोड़ा होगा पति का उतना ही प्यार गहरा होगा। पुरुष नहीं होते हैं पुरोहित महिला ही होती है पुरोहित।

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