5
(1)

बिहार कृषि विश्वविध्यालय, सबौर को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत 59.10 लाख रुपए की केंद्र प्रायोजित नयी परिजोयना प्राप्त हुई है। इस परियोजना के द्वारा बीएयू के अंतर्गत एक ‘मॉडल जीनोम क्लब’ की स्थापना की जाएगी। क्लब के द्वारा राज्य मे फैली पौध जैव-विविधता को सँजोये रखने की दिशा मे कार्य करने के साथ ही उसके महत्व को लोगो को समझाने का कार्य किया जाएगा। राज्य मे बहुत से किसान एवं किसान संगठन हैं जो जैव-विविधता एवं परंपरागत किस्मों को बचाने का कार्य करते हैं। क्लब द्वारा विभिन्न फसलों के पुराने एवं परंपरागत बीजों के संरक्षण कर रहे राज्य के किसानों और किसान समूहों आदि की पहचान कर उन्हें सम्मानित करने का कार्य किया जाएगा साथ ही उपलब्ध पौध जैव- विविधता तथा विभिन्न फसलों की.

परंपरागत एवं पुरानी किस्मों के बीजों का समुचित आकलन एवं प्रलेखन किया जाएगा। क्लब किसानों, वैज्ञानिकों, स्कूली बच्चों आदि में प्रशिक्षण के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाने का कार्य करेगा।
पौध जैव विविधता का संरक्षण भविष्य में किए जाने वाले सभी प्रकार के फसल सुधार कार्यकर्मों के लिए नितांत आवश्यक है जिससे विभिन्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। परियोजना के अंतर्गत औधौगिक, व्यवसायिक, चिकित्सा एवं सौन्दर्य आदि विभिन्न दृष्टकोणों से महत्वपूर्ण पौध किस्मों की.

पहचान कर उनके प्रचार-प्रसार एवं उत्पादन दायरे को बढ़ाने की संभावना का आकलन भी किया जाएगा जिससे राज्य में जैव विविधता एवं पौधा किस्मों के संरक्षण से जुड़े किसानों की आमदनी बधाई जा सके। विभिन्न पौध किस्मों के डीएनए फिंगर-प्रिंटिंग और बार-कोडिंग का कार्य किया जाएगा जिससे महत्वपूर्ण पौध किस्मों को बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान की किया जा सके और राज्य की जैव विविधता को एक नयी पहचान मिल सके।

इसके अलावा बिहार कृषि विश्वविध्यालय, सबौर के अंतर्गत एक ‘मॉडल जीनोम प्रयोगशाला-सह-संग्राहलय की स्थापना की जाएगी जिससे लोगों को राज्य में उपलब्ध पौध जैव विविधता की एक झलक मिल सके। शुरुआती तीन वर्ष की अवधि के पश्चात परिजोजना को प्रगति एवं वित्तीय आकलन कर आगे बढ़ाया जाएगा।
माननीय कुलपति की टिप्पणी- बीएयू सबौर मे मोडेल जीनोम क्लब की स्थापना एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। पुरानी एवं परंपरागत किस्मों का बचाव बहुत ही जरूरी है क्योंकि इन किस्मों कि उपज भले ही कम हो लेकिन इनमे गुणवत्ता एवं रोग एवं कीट प्रतिरोधक क्षमता छिपी होती है जिसका इस्तेमाल करके नयी एवं उन्नतशील किस्में तैयार की जा सकती हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि यह परियोजना बिहार के किसानों के लिए वरदान साबित होगी।

Aapko Yah News Kaise Laga.

Click on a star to rate it!

Average rating 5 / 5. Vote count: 1

No votes so far! Be the first to rate this post.

Share: