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तीनटंगा दियारा के आजमाबाद गांव में स्थापित मैया दुर्गा इलाके के सबसे पुरानी भगवती के रूप में जानी जाती है। इसकी स्थापना 1925 ईस्वी में स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से हुआ था। 96 वर्ष पुरानी मैया भगवती के सामने आज तक जिसने भी झोली फैलाया उसकी झोली खाली नहीं गई है। इन्हीं कारणों से यहां के दुर्गा मैया को मुरादों वाली मैया के नाम से इलाके के लोग जानते हैं। मैया के दरबार में क्षेत्र के बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ से लेकर जाने-माने व्यवसाई और आम लोग यहां सर झुका कर अपनी मुरादों की यात्रा शुरू करते हैं।

यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष यहां लोग मिठाई बताशा के अलावे सोना चांदी भी चढ़ाते हैं। एक वर्ष भी ऐसा नहीं बिता है जिस वर्ष यहां सोना और चांदी नहीं चढ़ाया जाता है। समूचे ग्रामीणों के सहयोग से यहां प्रत्येक वर्ष भव्य मेले का आयोजन किया जाता रहा है। आमतौर पर सभी मंदिरों में जहां नवमीं के दिन से मेला प्रारंभ होता है वही इस मंदिर के प्रांगण में अष्टमी के दिन से ही लोगों की भीड़ मेले के रूप में दिखने लगती है। स्थानीय प्रशासन के द्वारा भी यहां चाक-चौबंद सुरक्षा की जाती है।

96 वर्ष पुरानी इस मंदिर का विकास लगातार हीं ग्रामीणों के सहयोग से किया जा रहा है। इस मंदिर के प्रथम पुजारी ह्रदय नारायण कुंवर और शिव सहाय कुंवर थे जबकि वर्तमान में मैया के सेवादार के रूप में दिनेश शर्मा जाने जाते हैं। मंदिर के इतिहास के बारे में पूजा समिति के अध्यक्ष मटरू शर्मा उर्फ़ बुद्धदेव शर्मा बताते हैं कि 1925 ईस्वी के बाढ़ में नवगछिया अनुमंडल के इस्माइलपुर गांव के दुर्गा और काली का मेढ कट कर गंगा में बह कर आजमाबाद गांव के सामने लग गया था।

जिसे जब लोगों ने देखा तो उठा कर गांव ला लिया गय। दूसरे दिन ही इस्माइलपुर से दर्जनों लोग मेढ को ढूंढते हुए आजमाबाद गांव आ गए और उन्हें ले जाने की जिद करने लगे। परंतु यहां के लोगों ने काली की मेढ तो उन्हें दे दी परंतु भगवती कि मेढ यहां रख लिया। उस समय यहां पर अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा महालवाड़ी व्यवस्था लागू किया गया था। यहां के किसानों से लगाना वसूलने के लिए रैयतदार के रूप में कोलकाता निवासी सिंघेश्वर उर्फ सिद्धेश्वर घोष थे।

जिनसे दुर्गा की स्थापना के लिए ग्रामीणों ने आरजू मिन्नत की जिसके बाद लगभग 3 एकड़ जमीन उन्होंने दान दे दिया। जब देश आजाद हुआ और रैयतदार भी यहां से वापस कोलकाता जाने लगे तो उन्होंने मां भगवती के नाम से और 5 एकड़ जमीन देवी स्थल के रखरखाव के लिए दान दे दिया। उस समय ग्रामीण फितन दास, भोला दास, गजनू दास, भीखो रजक, शिवचरण शर्मा, दीप नारायण शर्मा, रामशीष सिंह, हिरदी कुंवर के अलावे सभी ग्रामीणों ने मंदिर की स्थापना में अपना अमूल्य सहयोग दिया। वर्तमान में मंदिर के विकास में दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष मटरू शर्मा, सचिव सुभाष रजक, रघुवंश रजक समाजसेवी अश्वनी कुमार उर्फ गुड्डू राजा, नरेश जयसवाल, हरीश शर्मा के अलावे 29 लोगों की कमेटी लगी हुई है।

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