भागलपुर/ निभाष मोदी
भागलपुर,अंगक्षेत्र के रेशमी शहर भागलपुर में एक ऐसी अनोखी प्रतिभा छिपी है जो आर्थिक मार से त्रस्त है, परंतु उनकी कलाकृतियां मानो सजीव होकर आपसे बात कर रही हो, उनके मूर्तियों की इतनी प्रशंसा हो रही है कि मानो कोई व्यक्ति सांसे बंद करके सजीव खड़ा हो ,पहचानना मुश्किल हो जाएगा कि कौन मूल है और कौन मूर्ति है ,कौन असली है और कौन नकली है,परंतु यह मूर्तिकार आर्थिक तंगी इस कदर झेल रहा है कि उनके कलाकारी पर तो असर पड़ ही रहा है उससे ज्यादा उसके परिवार पर भी खासा दिक्कतें देखने को मिल रही हैं , उसे दूसरों के घर जाकर मजदूरी करनी पड़ रही है ,जबकि उन्होंने छोटे से बड़े राजनेता आईएएस आईपीएस अधिकारियों को महापुरुषों की मूर्तियां भेंट कर वाहवाही बटोरी है अब सवाल यह उठता है कि क्या इस आर्थिक युग में सिर्फ वाहवाही और तालियों से पेट भर जाएगा ?
क्या कहते हैं भागलपुर के होनहार मूर्तिकार संजीव शर्मा
भागलपुर के हुसैनाबाद का रहने वाला एक उम्दा मूर्तिकार संजीव कुमार शर्मा का कहना है कि सरकार सभी वर्गो व क्षेत्रों के लिए लोगों को आर्थिक मदद करती है परंतु मूर्तिकारों की अनदेखी की जा रही है ,हम मूर्तिकारों के साथ सरकार सौतेला व्यवहार कर रही है, मूर्तिकार संजीत कहते हैं हमारी कमाई काफी घट गई है, बच्चों के पढ़ाई लिखाई की बात तो दूर खाने पर भी आफत है जिसके चलते हमारी कलाकारी फल फूल नहीं रही,सरकार को इस पर जल्द से जल्द ध्यान देने की जरूरत है, उन्होंने यह भी कहा कि मैंने अभी तक जितनी भी मूर्तियों का निर्माण किया है उसमें देशभक्ति से ओतप्रोत प्रतिमाओं का निर्माण किया है, मेरा मकसद है लोगों के बीच मूर्तिकला के माध्यम से देशभक्ति की भावना जगाना।
मूर्तिकार संजीव शर्मा का एक परिचय
रेशमी शहर भागलपुर के बाँसी रोड स्थित हुसैनाबाद दुर्गास्थान महावीर मंदिर के सामने रहने वाला स्वर्गी नरेश कुमार शर्मा का पुत्र मूर्तिकार संजीव कुमार शर्मा अपनी मूर्ति कला में सिर्फ और सिर्फ देशभक्ति प्रतिमा का निर्माण करते हैं और इसमें उनकी पत्नी जूली देवी, दो बेटी प्रियंका और प्रिया एक बेटा राहुल काफी मदद करते हैं, आर्थिक रूप से कमजोर मूर्तिकार संजीव की स्थिति इतनी दयनीय है कि वह सिर्फ मूर्तियां बना कर अपने घरों को नहीं चला सकते ,वह अपनी मूर्तिकला को छोड़कर कभी बढ़ाई मिस्त्री का काम करते हैं तो कभी ईट बालू उठाने का काम करते हैं।
सरकार के रवैया से मूर्तिकार संजीव की पत्नी और बेटी की आंखें है नम
मूर्तिकार संजीव की पत्नी और बेटी भी अपने पिता का हाथ बताती है परंतु उनकी पत्नी का कहना है हमारे घर में ना तो बिजली है और ना ही पानी की व्यवस्था, घर की भी स्थिति काफी जर्जर है ,अपने बच्चों को मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाती हूं और हमारे पति मूर्ति बनाने का काम बाहर बिजली पोल के नीचे किया करते हैं वही बेटी कहती है मेरे पिताजी इतने अच्छे मूर्तिकार होते हुए हम लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं अब हमें ही कुछ करना पड़ेगा क्योंकि मूर्ति से कुछ आमदनी नहीं हो पाता है।
देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत मूर्तिकार संजीव सिर्फ देशभक्ति प्रतिमा का करते हैं निर्माण
बताते चलें कि संजीव 20 वर्षों से देशभक्ति की भावना से यह कार्य कर रहे हैं, उन्होंने अभी तक गांधीजी, सुभाष चंद्र बोस, एपीजे अब्दुल कलाम ,सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, चंद्रशेखर आजाद, विवेकानंद जैसे कई मूर्तियों का निर्माण कर चुके हैं। स्कूल- कॉलेज व विशेष आयोजनों में जा जाकर खुद की बनाई हुई मिट्टी की प्रतिमा बांटते हैं, प्रतिमा बैठने का उद्देश्य इनका इतना भर है कि हर दिल में भारत के महापुरुष जिंदा रहे, कला के जरिए देश का गौरव करने का एक तरह से यह अनूठा अभियान पिछले कई वर्षों से चला रहे हैं, कई बड़े से बड़े दिग्गज राजनेताओं, आईएएस, आईपीएस अफसरों को अपनी कला भेंट कर चुके हैं परंतु किसी ने भी आज तक इस देशभक्त होनहार मूर्तिकार को सरकार की ओर से आर्थिक मदद तक नहीं करा पाई जिसके चलते उनकी इस कलाकारी पर ग्रहण लगता दिख रहा है। सरकार को ऐसे होनहार मूर्तिकार पर पहल करने की जरूरत है और ऐसे गुमनाम हो रहे विलक्षण प्रतिभावान कलाकार को आर्थिक मदद कर आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाना चाहिए जिससे हमारा शहर राज्य और देश इसे जाने।