- भारतीय शिक्षा व्यवस्था और भविष्य की चुनौतियां विषय पर आयोजित परिचर्चा में बोले विशेषज्ञ
- बोर्ड परीक्षा में पास होने के लिए छात्रों को दो मौके मिलने के प्रावधान की भी हुई तारीफ
नई दिल्ली। भारतीय शिक्षाविदों का मानना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षानीति भारतीय शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों से निबटने में पूरी तरह सक्षम है। उनका मानना है कि नई नीति में ऐसे कई प्रावधान हैं जो छात्रों के मन से परीक्षा के दबाव को दूर करने और सीखने की गुणवत्ता को बढ़ाने में कारगर साबित हो सकते हैं।
प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा व रोजगारपरक शिक्षा से जुड़े विभिन्न संस्थानों के ये शिक्षाविद फ्रेडरिक न्यूमन फाउंडेशन (एफएनएफ) द्वारा आयोजित एक पैनल परिचर्चा के दौरान अपने विचार व्यकत कर रहे थे।
एफएनएफ द्वारा आयोजित ‘द फ्यूचर ऑफ इंडियाज़ एजुकेशनल सिस्टमः प्रिपेयरिंग फॉर द डेमोग्राफिक शिफ्ट’ के दौरान एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज के डिप्टी सेक्रेटरी कुलदीप डागर ने कहा कि शिक्षा में सुधार के माध्यम से ही भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो सकता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय छात्र शिक्षा प्राप्त करने में औसतन 16.5 वर्ष खर्च करते हैं जबकि विकसित देशों में छात्र शिक्षा के क्षेत्र में औसतन 18 वर्ष खर्च करते हैं। उन्होंने कहा कि गुणवत्तायुक्त शिक्षा के क्षेत्र में खर्च किया गये एक अतिरिक्त वर्ष से देश की जीडीपी में एक प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
लाइटहाउस कम्यूनिटीज के चेयरमैन डा. गणेश नटराजन ने कहा कि भारतीय मेधा की दुनिया कायल है और फॉर्च्युन 100 कंपनियों में से 24 कंपनियों का नेतृत्व भारतीयों द्वारा किया जा रहा है। न्होंने कहा कि एनईपी के प्रावधान छात्राओं को शिक्षा व्यवस्था से जोड़ने और शिक्षा प्रणाली में व्याप्त लैंगिक विषमता को दूर करने में सक्षम है।
परिचर्चा में यूथ4जॉब्स की सीईओ मीरा शेनॉय, एप्लिकेशन एज के सह-संस्थापक अवि क्रिस बेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। परिचर्चा का संचालन आह्वान के सीईओ रोहन जोशी ने किया।