प्रखंड में फर्जी क्लीनिक, नर्सिंगहोम का कारोबार खूब चल रहा है।क्लीनिक खुलते ही इस में काम करने वाले डॉक्टर और स्टाफ दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगते हैं। यह भी मामला प्रकाश में है कि क्लीनिक में सिजेरियन, बच्चादानी, हर्निया, अपेंडिस का ऑपरेशन होता है। नारायणपुर में चल रहे अवैध क्लीनिक, अल्ट्रासाउंड में काम करने वाला कर्मी प्रशिक्षित नहीं रहता है। यूं ही काम करते करते अनुभव हो जाता है और वह डॉक्टर को सहयोग करने लगते हैं। डॉक्टर भी कुशल सर्जन नहीं होते हैं। इसके साथ ही ऑपरेशन करने से पहले एनेस्थेटिक अर्थात बेहोश करने की सुविधा भी नहीं है। चर्चा यह भी है कि यहां कुल मिलाकर पांच से छह क्लीनिक है जहां सिजेरियन का सत्रह से बीस हजार और बच्चादानी का दस से बारह हजार रुपये, हर्निया का दस हजार, अपेंडिक्स का ऑपरेशन छह से पांच हजार रुपये में लिया जाता है।इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। यदि ऑपरेशन के बाद स्थिति गंभीर होती है तो रेफर किया जाता है। जिसकी जिम्मेदारी यहां के डॉक्टर की नहीं होती है। कोई अनहोनी घटना हो जाती है तो रुपया के बल पर उस मामला को मैनेज कर लिया जाता है।यहां अल्ट्रासाउंड का भी दो से तीन जगह काम होता है। लैब भी पांच है जिसमें कुछ पंजीकृत भी है। क्लीनिक भी पांच है।
एक तरफ सरकार ने सुरक्षित प्रसव के लिए सरकारी अस्पताल में सभी प्रकार की सुविधा दिया है लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि सरकारी हॉस्पिटल में प्रतिदिन पांच से सात प्रसव होता है इसलिए सरकारी अस्पताल के अलावा निजी क्लीनिक या नर्सिंग होम में प्रसव कराने के लिए महिला कहां और कैसे आ जाती है इसके पीछे बड़ा गोलमाल है। अर्थात कुछ अर्द्ध सरकारी कर्मी इसमें कमीशन के तौर पर गर्भवती महिला को बरगला कर निजी क्लीनिक में लाते हैं जहां डॉक्टर सीधा-सीधा सीजेरियन कर देते हैं। जिसमें प्रसूति महिला को क्लिनिक लाने वाले और इसमें सहयोग करने वाले का कमीशन रहता है।सोमवार को भागलपुर सिविल सर्जन डॉ उमेश शर्मा ने निरीक्षण करके फर्जी क्लीनिक अल्ट्रासाउंड का भंडाफोड़ कर दिया है। हालांकि सिविल सर्जन ने दावा किया है कि सभी पर कार्रवाई होगी। देखना यह है कि सिविल सर्जन के स्तर से कार्रवाई होती है या जांच के नाम पर दिखावा करके मामला को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। देखा यही गया कि जांच के बाद भी नारायणपुर में क्लिनिक अल्ट्रासाउंड लैब उसी तरह से काम कर रहा है जिस तरह सीएस जांच के पूर्व चलता था।
जाँच के पूर्व चल रहा था अर्थात सीएसके जांच का किसी को कोई असर नहीं दिख रहा है। सभी अपना अलग-अलग दावा कर रहा है कि चिकित्सा विभाग में सभी की अपनी-अपनी पहुंच है जांच से कुछ होने वाला नहीं है।
चिकित्सकों का मानना है कि ऑपरेशन से पूर्व बेहोश किया जाता है। सवाल ये उठता है कि एनेस्थेटिक कैसे किया जाता है। इस समय बड़ा ही जोखिम भरा काम डॉक्टर को करना पड़ता है। क्लीनिक में इस तरह का काम कौन करता है यह भी गंभीर जांच का विषय है।