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कटाव, खेती किसानी और क्राइम की समस्याओं के बीच नवगछिया को है जिला बनने की छटपटाहट

  • लोग मानते हैं सभी मुद्दे का निचोड़ है जिला बनाने की मांग

ऋषव मिश्रा “कृष्णा”, मुख्य संपादक , जीएस न्यूज़

दशक दर दशक बीतते रहे लेकिन नवगछिया का स्थायी मुद्दा “तीन क” यानी कटाव, किसानी और क्राइम आज भी यथावत है. पिछले एक दशक में जब इन मुद्दों को मुकाम नहीं मिला तो लोगों को लगने लगा, अगर नवगछिया को पूर्ण जिला का दर्जा मिल जाय तो इन तीन मुद्दों में समाहित कई तरह की समस्याओं का स्वतः निदान हो जाएगा. लोगों के इस तरह से सोचने का तरीका भी बिल्कुल सही है. यही कारण है नवगछिया को जिला बनने की छटपटाहट है, बेचैनी है. सत्ता हो या विपक्ष प्रत्येक दल और अलग अलग सोच रखने वाला व्यक्ति नवगछिया को पूर्ण जिला बनाने के मुद्दे पर एक है लेकिन 10 वर्ष पुराने मुद्दे को मुकाम नहीं मिल पाया. लिहाजा “तीन क” का मुद्दा भी यथावत है.

क्राइम आज भी सबसे बड़ा मुद्दा

समाजशास्त्र के सुरक्षा का सिद्धांत नवगछिया में गहरी पैठ रखता है. खास कर 1980 के दशक के बाद से निरंतर यह परिपाटी और ज्यादा मजबूत हुई है. मालूम को कि नवगछिया के पिछले तीस – चालीस वर्षों का इतिहास नरसंहारों से रक्त रंजित रहा है. वर्तमान में संगठित अपराध तो लगभग समाप्त हो चुका है लेकिन अपराध ने अपना तरीका बदल लिया है. अब सफेदपोशों की चलती है. गोटी सेट कर विकेट डाउन करने की नई परिपाटी ने विस्तृत आकार के लिया है. तो दूसरी तरफ जघन्य वारदातों के मामले एक के बाद एक सामने आते ही रहते हैं. ऐसी स्थिति में यहां के मतदाता ऐसे नेता की तलाश में रहते हैं जो उन्हें सुरक्षा दे सके. और यहीं से लोकतंत्र में जात और जमात की राजनीति शुरू हो जाती है. ऐसी स्थिति में सोसल
इंजीनियरिंग में फिट न बैठ पाने वाले नेता हाशिये पर छूट जाते हैं.

कटाव, बाढ़, विस्थापन और पुनर्वास भी अहम मुद्दा – जबकि कटाव रोकने के नाम पर खर्च कर दिए गए सात सौ करोड़

नवगछिया में 50 हजार से अधिक आबादी बेघर है तो तटवर्ती इलाके में रहने वाले दो लाख से अधिक लोग कटाव के मुहाने पर है तो सामान्य स्थिति में एक लाख से अधिक लोग हर वर्ष बाढ़ प्रभावित होते हैं. विगत 13 -14 वर्षों से लोगों के घरों व उनकी उपजाऊ जमीन को बचाने के लिये कटाव निरोधी कार्य किया जा रहा है. काटव को रोकने के नाम पर सात अरब से भी अधिक रुपये खर्च किये जा चुके हैं लेकिन कटाव का खतरा जस का तस है तो अनुमंडल के विभिन्न गांवों में विस्थापन एक बड़ी समस्या बन गयी है. बड़ी संख्या में लोग सड़क किनारे, रेलवे स्टेशन के बगल में, बांधों पर रहने को विवश है. उम्मीद है इस चुनाव के बाद नवगछिया की इस ज्वलंत समस्या का भी निदान निकाला जाएगा.

खेती किसानी की समस्याओं ने कइयों को प्रवासी मजदूर बना दिया

एक निजी संस्था के सर्वे के अनुसार आज भी नवगछिया की 80 फीसदी आबादी खेती किसानी पर निर्भर है. लेकिन ज्यादा उत्पादन के बाद भी अच्छा बाजार न मिलना यह किसानों को पलायन के लिये मजबूर करता है. इस वर्ष मक्का किसानों की हालात जगजाहिर है. केला किसानों का भी कमोबेश यही हाल है. अब तक इलाके में एक भी फल, अनाज आधरित उद्योग धंधे की स्थापना नहीं हो पायी है. लिहाजा अच्छा बेहतर उत्पान के बाद किसानों के सामने औने पौने भाव पर उत्पादित फल या अनाज बेचना ही एक मात्र विकल्प रहता है क्योंकि किसानों के पास उत्पादित सामग्री के स्टोरेज की भी व्यवस्था नहीं है. ऐसी स्थिति में ऐसे में खेती किसानी नुकसान नहीं तो बेगारी सिद्ध हो जाती है और बेगारी पलायन को मजबूर कर देती है. ऐसे कई उदाहरण हैं कि कल के कृषक आज दिल्ली पंजाब के फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं.

लोगों ने कहा ने कहा जिला घोषित होने के बाद टूटेगी “तीन क” की तिकड़ी

नवगछिया के आमलोगों, बुद्धिजीवियों और व्यवसायी वर्ग से नवगछिया निवासी संतोष गुप्ता, चंद्रगुप्त साह, अशोक केडिया, खगड़ा के नीरज कुमर, गोपालपुर निवासी उच्च न्यायालय के अधिवक्ता मुकेश कुमार, रंगरा निवासी छप्पन सिंह मोनू आदि ने कहा कि जिला बनने के बाद नवगछिया का तीव्र विकास होगा और “तीन क” की तिकड़ी टूट जाएगी. उम्मीद है चुनाव के बाद नवगछिया को जिला जरूर बनाया जाएगा.

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