भागलपुर : नौकरी अगर अच्छी हो तो खेती-किसानी करने के बारे में भला कौन सोचता है पर बदलाव के इस दौर में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी जिद और जज्बे के चलते नई राह पकड़ रहे हैं। आइये हम आपको मिलवाते हैं ऐसे ही भागलपुर के एक युवा इंजीनियर से जिन्होंने मेहनत कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। लेकिन जब बात नौकरी की आई तो गांव की मिट्टी उन्हें वापस खींच लाईं।
भागलपुर जिला मुख्यालय से करीब पचास किमी दूर पीरपैंती प्रखंड के दबौली गांव के रौनक कुमार दुबे आज किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं। 2015 में अन्ना यूनिवर्सिटी चेन्नई से बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें कई कंपनियों से लाखों के पैकेज का ऑफर आया, लेकिन उन्होंने इन नौकरियों से इतर स्टार्टअप का रास्ता चूना। वर्ष 2017 में उनका चयन बिहार स्टार्टअप प्रोग्राम के लिए हुआ। इसके बाद उन्होंने एग्री फीडर नामक एक कंपनी का गठन किया और लेमन ग्रास से हर्बल चाय को तैयार करने लगे।
बंजर भूमि से होने लगी लाखों की कमाई
रौनक बताते हैं कि पहले जिस जमीन पर फसल का उत्पादन न के बराबर होता था अब उसी जमीन से लाखों की कमाई हो रही है। वे इन जमीनों पर लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं। साथ ही गांव के अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसका परिणाम है कि आज दो साल के अंदर गांव के आसपास के कई किसान लेमन ग्रास की खेती से जुड़ गए हैं।
ऑनलाइन करते हैं चाय की मार्केटिंग
इन खेतों में तैयार लेमन ग्रास की प्रोसेसिंग कर चाय पत्ती तैयार की जा रही है। अब तक ऐसा मानना था कि चाय के रूप में लेमन ग्रास की केवल हरी पत्तियों का ही उपयोग हो सकता है। लेकिन, रौनक लेमन ग्रास की सूखी पत्तियों से चाय पत्ती तैयार करवा रहे हैं। साथ ही इसकी मार्केटिंग वह ऑनलाइन कर रहे हैं। अभी उन्हें बिहार के विभिन्न शहरों के अलावा दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों से भी ऑर्डर मिल रहा है
परंपरागत के साथ व्यवसायिक खेती के लिए कर रहे प्रेरित
स्र्टाअप के इस प्रोजेक्ट में रौनक के साथ उनका छोटा भाई राकेश दुबे भी हैं। वह भी बेंगलुरु से एमबीए की पढ़ाई पूरी कर लौटे हैं। रौनक बताते हैं कि यहां के किसान केवल परंपरागत खेती करते हैं। लेकिन अगर हम परंपरागत खेती के साथ कुछ औषधीय या नकदी फसल की खेती करें तो वह बेहतर साहिब होगा। साथ ही इन उत्पादनों की मार्केटिंग भी किसानों को खुद करनी चाहिए।