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रंगरा प्रखंड में  इस बार आई भीषण बाढ़ ने एक तरफ जहाँ आम लोगों के जनजीवन को बेहाल करके रख दिया तो वहीं दूसरी तरफ बडे पैमाने पर पपीते एवं ओल की खेती करने वाले  क्षेत्र के किसानों का फसल नष्ट होने से इन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है।अपने अरमानों की फसल नष्ट होने से बाढ़ ने किसानों को खून के आंसू रोने पर विवश कर दिया है। मक्के की पारंपरिक खेती छोड़ कर डुमरिया एवं रंगरा  के किसानों ने अपनी तकदीर सवांरने के लिए पपीता और ओल की खेती बृहत्  पैमाने पर की थी।

परंतु किसानों के तकदीर पर बाढ़ की कयामत ने सब कुछ तबाह कर के रख दिया।  जबकि पूरा प्रखंड क्षेत्र जलमग्न हो जाने के कारण सब्जी की खेती करने वाले किसान की खेती भी पूरी तरह चौपट हो गई है। लिहाजा सब्जी की खेती तबाह हो जाने से प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत लगने वाले सब्जी हाटों में सब्जी की महंगाई दोगुनी से तीगुनी हो गई है। सब्जी की महंगाई बढ़ जाने के कारण लोगों की थाली से हरी सब्जी गायब हो रही है।

बताते चलें कि इस बार सधुआ के किसान एवं   डुमरिया के दर्जनों किसानों ने बडे पैमाने पर  पपीता और ओल की खेती की थी,जो बाढ़ की भेंट चढ़ गया।सधुआ के  किसान उमेश दास ने बताया कि 1 एकड़ में डेढ लाख  रुपये पपीते की खेती करने में खर्च होता है।अगर फसल का पैदावार अच्छा हुआ तो एक एकड में लगभग तीन लाख रुपये आमदनी हो जाती है। 

       वही  किसान श्याम मंडल, टेम्ही मंडल, लिटो मंडल, अमित मंडल, धनेश्वर मंडल, सुशील मंडल सहित दर्जनों किसानों ने बताया कि लगभग दस एकड जमीन में हमलोगों ने पपीते की खेती की थी। यह सोचकर कि शायद इससे तकदीर सवंर जाएगी परन्तु बदकिस्मती ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। पहले तो जिस एग्रीकल्चर एजेंसी से हमलोगों ने पपीते का पौधा खरीदा, वह थोड़ा बड़ा होने के बाद अपने आप मरने लगा और उधर एग्रीकल्चर एजेंसी भी भाग गयी।

हमलोगों ने उन्हें लगभग 4 लाख रूपया दिया था। फिर हमलोगों ने दूसरे से पौधा ख़रीदा जिसमें अब तक में 10 से 12 लाख रूपया खर्च हो गया था। पर इस बार बाढ़ ने सब कुछ तबाह करके रख दिया। कर्ज लेकर हमलोगों ने खेती की थी पर  सब पानी में बह गया। आज खाने के भी लाले पड़ गए हैं। हमलोग भुखमरी के कगार पर आ गए हैं। बहरहाल प्रखंड क्षेत्र के किसानों की कमर इस बाढ़ ने तोड़ कर रख दी है।

एक तरफ जहां मक्के के किसान आंसू बहाने पर विवस है तो वहीं दूसरी तरफ पपीते और ओल की खेती करने वाले किसान कर्ज तले दबते जा रहे हैं। किसान भुखमरी के कगार पर है। किसान सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें फसल क्षति का मुआवजा जल्द से जल्द अवश्य मिलेगा।

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