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मायके-ससुराल कहीं नहीं मिल रहा सहारा

जहां तहां मांगकर भरती है पेट

नवगछिया : पति के विक्षिप्त होने के बाद दर-दर भटक रही अनिता, मायके-ससुराल कहीं नहीं मिल रहा सहारा
रिपोर्ट – शयामानंद सिंह, नवगछिया

नवगछिया। बिहपुर प्रखंड के झंडापुर निवासी स्व. पूरन राय की इकलौती पुत्री अनिता देवी अपने पति के विक्षिप्त होने के बाद से दर-दर भटक रही है। न तो उसे रहने के लिए घर मिल रहा है, न खाने के लिए अनाज और न ही कोई सहारा देने वाला। अनिता अशिक्षित और मंदबुद्धि होने के कारण न तो मायके से और न ही ससुराल से कोई मदद मिल रही है।

अनिता की शादी 2004 में नारायणपुर प्रखंड के सिंहपुर पश्चिम पंचायत के निवासी स्व. उमेश चौधरी के मंझले बेटे रामनिवास चौधरी से हुई थी। 2006 में अनिता को एक पुत्र, गोलू कुमार और 2008 में एक पुत्री, शबनम कुमारी हुई। परिवार की स्थिति पहले से ही खराब थी, और रामनिवास ने घर बनाने की कोशिश की, लेकिन पैसे की कमी के कारण घर अधूरा ही रह गया। इसके बाद वह अपने परिवार को छोड़कर जयपुर चला गया और नशे की लत के कारण मानसिक विक्षिप्त हो गया।

जयपुर से घर लौटने के बाद, रामनिवास का मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि वह अब कहीं नहीं ठहर सका और दर-दर भटकने लगा। उसकी बहन नीता देवी ने उसे खगड़िया जिला के भरतखंड थाना क्षेत्र स्थित अपने घर लेकर काम में लगा दिया। पति के विक्षिप्त होने के बाद अनिता अपने बच्चों के साथ घर में रहने लगी और आस-पास के घरों में काम करके किसी तरह से अपना और अपने बच्चों का पेट भरने लगी।

लेकिन 2011 में अनिता की तीन वर्षीय बेटी शबनम की अचानक तबियत बिगड़ी और उसकी मौत हो गई। अनिता का कहना है कि **”मेरी बेटी की मौत भूख के कारण हुई थी।” इसके बाद, रामनिवास की बहन ने गोलू को अपने साथ ले लिया और अनिता को अकेला छोड़ दिया। तब से अनिता अपने बच्चों के बिना अकेली हो गई और अब भी वह दूर-दराज के घरों में काम करके अपना पेट भरने को मजबूर है।

गोलू, 21 साल का हो गया, लेकिन नहीं लेता है माँ का सुध

अनिता का 21 वर्षीय पुत्र गोलू अब खगरिया जिले के खजरैठा में टोटो चलाता है, लेकिन उसने कभी अपनी मां का हाल नहीं पूछा। अनिता कहती हैं कि “अगर कभी मुझे गोलू सड़क पर दिखता है, तो वह मुझे देख कर मुंह छुपाकर निकल जाता है।”

यहां तक कि अनिता के पति रामनिवास, जो पिछले बारह वर्षों से अपनी बहन के यहां मजदूरी कर रहे हैं, उनके इलाज का खर्च भी उठाने की स्थिति में नहीं हैं। अगर समाज और परिवार जागरूक होकर अनिता की मदद करें, तो वह और उनका परिवार फिर से एक बेहतर जीवन जी सकते हैं।

अनिता जैसी महिलाएं जिनका जीवन विकट परिस्थितियों में बीत रहा है, उनके लिए समाज और प्रशासन को आगे आकर मदद करने की जरूरत है। यह न सिर्फ अनिता, बल्कि हर उस महिला के लिए है जो परिवार और समाज के सहारे के बिना संघर्ष कर रही है।

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