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भागलपुर : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के विशेष आपदा अनुसंधान केंद्र (SCDR) और जाम्भाणी साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जो अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के अवसर पर हुआ। इस सम्मेलन का शीर्षक था “प्रकृति की रक्षा, आपदाओं की रोकथाम: गुरु जंभेश्वर जी का सतत भविष्य के लिए दृष्टिकोण।”सम्मेलन का उद्देश्य पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक आपदा प्रबंधन रणनीतियों को जोड़कर सततता, पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रतिरोध क्षमता को बढ़ावा देना था। गुरु जंभेश्वर जी की शिक्षाएं, जो मनुष्य, प्रकृति और वन्यजीवों के बीच सामंजस्य की बात करती हैं, इस सम्मेलन के मुख्य विषय थीं, जो यह दर्शाती हैं कि प्राचीन ज्ञान आज के पर्यावरणीय संकटों का समाधान कैसे कर सकता है।
डॉ. दीप नारायण पांडेय (सहायक प्रोफेसर, विशेष आपदा अनुसंधान केंद्र, जेएनयू),
प्रो. (डॉ.) इंद्रा बिश्नोई (अध्यक्ष, जांभाणी साहित्य अकादमी)
डॉ. पुष्पा कुमार लक्ष्मणन – निदेशक, विधि महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय),
श्री एल.आर. बिश्नोई (सेवानिवृत्त आईपीएस; पूर्व डीजीपी, मेघालय),डॉ. एम.के. रंजीतसिंह (सेवानिवृत्त आईएएस; पूर्व निदेशक, भारतीय वन्यजीव संरक्षण),
राज कुमार भाटिया (विधायक, दिल्ली) विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए।
इन विशिष्ट अतिथियों ने आस्था और पर्यावरण संरक्षण के आपसी संबंध को सराहा और बताया कि प्राचीन शिक्षाओं को आधुनिक आपदा प्रबंधन नीति में कैसे जोड़ा जा सकता है। गुरु जंभेश्वर के 29 सिद्धांत सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण और पशु कल्याण के सार को प्रतिध्वनित करते हैं।गुरु जंभेश्वर की विरासत का सम्मान करने के लिए, सम्मेलन ने एकल-उपयोग प्लास्टिक को समाप्त करने का संकल्प लिया है—इसके स्थान पर तांबे के पात्र अपनाए जाएंगे।भगवान कृष्ण आपदा प्रबंधन के जनक हैं—गोवर्धन पर्वत उठाना बाढ़ शमन का प्रारंभिक उदाहरण था। प्राचीन ज्ञान से लेकर आधुनिक सतत विकास लक्ष्यों तक—भारत ने हमेशा पर्यावरणीय दृढ़ता का नेतृत्व किया है। गुरु जंभेश्वर जी ने अपना जीवन समुदायों को प्राकृतिक संसाधनों, वन्यजीवों और मानवता के जटिल संबंध के प्रति जागरूक करने के लिए समर्पित किया।

सम्मेलन में समानांतर सत्रों में महत्वपूर्ण वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए, जिनमें डॉ. सुमित डूकरिया (GGSIP विश्वविद्यालय), जगदीश बिश्नोई (दिल्ली विश्वविद्यालय), डॉ. मीना रानी (राजस्थान विश्वविद्यालय), डॉ. क्षितिज कुमार सिंह (विधि संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय), अतीन्द्र पाल सिंह, (पर्यावरण अध्ययन विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय), डॉ. स्वाति बिश्नोई (केएमसी, दिल्ली विश्वविद्यालय), श्री हरषवर्धन आर्य (दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. सुरेंद्र सिंह (चेरमैन, जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज), डॉ. संजीव शर्मा और अशोक शर्मा शामिल थे। इन विशेषज्ञों ने पारंपरिक ज्ञान के आपदा जोखिम कम करने, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु अनुकूलता में योगदान पर चर्चा की, विशेषकर बिश्नोई समुदाय द्वारा अपनाए गए तरीकों पर जोर दिया।

समापन सत्र में प्रो. रवि शेखर, निदेशक, UGC-HRDC, जेएनयू ने स्वागत संबोधन दिया। सत्र का समापन राज कुमार भाटिया, दिल्ली विधानसभा के सदस्य, मुख्य अतिथि के रूप में और श्री खम्मू राम बिश्नोई, जोधपुर उच्च न्यायालय के सहायक रजिस्ट्रार, सम्मानित अतिथि के रूप में हुआ। सुश्री अनु लाल, लेखिका, वकील और उद्यमी ने समापन भाषण दिया, जिसमें पर्यावरण संरक्षण में व्यक्तिगत और सामूहिक जिम्मेदारी की बात की।

यह सम्मेलन शोधकर्ताओं, विशेषज्ञों और विद्वानों के लिए पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक पर्यावरणीय समाधान के मेल से सतत और लचीला भविष्य बनाने पर विचार-विमर्श करने का एक महत्वपूर्ण मंच था, जिसने वैश्विक पर्यावरणीय संकटों का समाधान खोजने के लिए नई दिशा प्रदान की।
कॉन्फ्रेंस डेलीगेट्स और शोध-प्रस्तुतकर्ताओं ने अपने शोध अनुभवो में इस बात की पुष्टि कि गुरु जंभेश्वर जी की शिक्षाओं ने कई पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया है एवं उनके विचारों में कई प्रकार की पारंपरिक और आधुनिक तरीकों के मेल से वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान संभव है। सम्मेलन में अकादमी के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष डॉ बनवारीलाल सहू, अकादमी के राष्ट्रीय संगोष्ठी संयोजक डॉ सुरेन्द्र कुमार, साहित्यकार डॉ कृष्णलाल बिश्नोई, पर्यावरणविद् इंजि. आर के बिश्नोई, डॉ मनमोहन लटियाल, डॉ जगदीश बिश्नोई, डॉ कृपाराम,डॉ स्वाति बिश्नोई, डॉ मीना रानी, डॉ महेश धायल,डॉ भंवरलाल उमरलाई, अन्नू लाल, डॉ भजनलाल, पर्यावरण सेवक श्री खम्मूराम,मास्टर गोरधनराम बांगड़वा, अनिल भांभू, विनोद कड़वासरा,विनोद काकड़,अशोक पंवार, सहीराम गोदारा आदि लोग उपस्थित रहे।
सम्मेलन की आयोजन समिति में डॉ. दीप नारायण पांडे (कॉन्फ्रेंस संयोजक) और डॉ. नरेंद्र कुमार बिश्नोई (जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर के समन्वयक) थे।

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