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नवगछिया के नगरह ग्राम की नव विवाहितों ने हर्षोल्लास के साथ मधुश्रावणी व्रत पूजन प्रारंभ किया। मिथिलांचल में मधुश्रावणी पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व उत्तर बिहार के जिलों में विशेष तौर पर मनाया जाता है। मान्यता है कि इसे नवविवाहिता ही करती हैं, खासकर शादी के बाद जो पहला सावन होता है, उसमें यह पर्व किया जाता है।

इस पर्व की खासियत यह है कि इसे महिला पुरोहित ही करवाती हैं। यह एकलौता पर्व है जहां महिला पुरोहित की भूमिका निभाती हैं। इस प्रसिद्ध पर्व की विशेषता बताते हुए श्री सुनील कुमार ठाकुर कहते हैं कि स्कंद पुराण के अनुसार नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि आदिकाल में कुरूप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल हुए थे। अपने पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था।

इस पर्व का मिथिला में विशेष महत्व है। मधुश्रावणी पर्व मिथिला की नवविवाहिताओं के लिए होती है। उनके लिए यह एक प्रकार की साधना है। नवविवाहिता लगातार 15 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती हैं, बिना नमक का खाना खाती हैं, जमीन पर सोती हैं, और झाड़ू नहीं छूती हैं। बहूत ही नियम से रहना पड़ता है।

विषहरी माता मंदिर के मुख्य पुजारी चंद्रकिशोर ठाकुर नें मधुश्रावणी पर्व की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि इस साधना में प्रतिदिन सुबह स्नान ध्यान कर नवविवाहिता बिशहरा यानी नाग वंश की पूजा और मां गौरी की पूजा अर्चना करती हैं। फिर गीत नाद होता है और कथा सुनती हैं। इस पूरे पर्व के दौरान 15 दिनों की अलग-अलग कथाएं होती हैं। इसमें भाग लेने के लिए घर के साथ आस-पड़ोस की महिलाएं भी आती हैं। उसके बाद शाम को अपनी सखी सहेलियों के साथ फूल लोढ़ने जाती हैं। इस बासी फूल से ही मां गौरी की पूजा होती है। पति के दीर्घायु हेतु यह महापर्व 15 दिनों तक चलता रहता है।

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