नवगछिया के रंगरा चौक प्रखंड के मंदरौनी गांव निवासी शहीद प्रभाकर को लोगों ने उनके शहादत दिवस पर याद किया है. मालूम हो कि 25 जुलाई 1976 को शहीद गनर प्रभाकर सिंह का जन्म हुआ था. उनके पिता परमानंद सिंह का आकस्मिक निधन 28 नवम्बर 1977 को हो गया. छोटी सी उम्र में उनके सर से पिता का साया छिन गया.
लेकिन उनकी माँ शांति देवी ने धैर्य के साथ अपने शिक्षक पति परमानंद सिंह के सपनों को पूरा किया. 1992 में प्रभाकर को मैट्रिक और 1994 में इन्टरमिडियट करवाया. पैसे की कमी के कारण उनका शुरूआती जीवन हमेशा अभाव में ही बीता. इसी बीच प्रभाकर को मधेपुरा के सहारा इंडिया शाखा में नौकरी मिल गई.
लेकिन दिल में देश प्रेम के जज्बे के कारण कुछ दिनों बाद वे सेना में बहाल हो गए. इस कारण उन्होंने सहारा इंडिया की नौकरी छोड़ दी. वे 333 मिसाइल ग्रुप अर्टिलरी सिकन्दराबाद में नियुक्त होकर काम करने लगे. उनके काम और देशप्रेम के जज्बे को देखकर सेना के आलाधिकारियों ने उन्हें 19 अप्रैल 1998 को छठी राष्ट्रीय रायफल बटालियन में प्रतिनियुक्त कर कारगिल भेज दिया. कारगिल में उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों से जमकर लोहा लिया.
दर्जनों पाकिस्तानी घुसपैठिये को मौत के घाट उतारा. इसी दौरान 11 जुलाई को दुश्मन की गोली उन्हें लगी और वे शहीद हो गए. उनकी शहादत को लेकर बनाया गया स्मारक भी कोशी नदी में विलीन हो चुका है. उनके ही ग्रामीण सह सामाजिक कार्यकर्ता रौशन सिंह बताते हैं कि शहीद प्रभाकर सिंह बचपन से मेहनती और साहसी थे.
अंगुली खराब होने के कारण पहली बार सेना की बहाली में उन्हें छांट दिया गया था. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने अंगुली के ठीक होने का इंतजार किया और दूसरी प्रयास में उन्हें सेना में नौकरी मिल गई. उनकी शहादत पर इस क्षेत्र की जनता को गर्व है.
11 जुलाई 1999 को भारत-पाकिस्तान के बीच हो रहे कारगिल युद्ध के दौरान मेरे गांव मदरौनी के प्रभाकर सिंह ने भारत माता की रक्षा करते हुए सीमा पर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था. शहादत दिवस पर विभांशु सिंह सुधांशु सिंह, सुजीत सिंह, शोनीत सिंह उनके पुत्र हर्षवर्धन सिंह, कन्हैया समदर्शी, राघव दूरदर्शी, रंजीत सिंह, कंचन सिंह, अनिमेष सिंह, गुड्डू सिंह, भास्कर सिंह, सोनू सिंह, प्रिंस कुमार, रोहित सिंह, निखिल सिंह ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है.