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ऋषव मिश्रा ‘कृष्णा’ की कलम से

नवगछिया इलाके से क्रांतिकारी कवि गोपाल सिंह नेपाली का अत्यधिक जुड़ाव था. नवगछिया में कवि नेपाली के कई अनन्य मित्र थे. अक्सर वे यहां आकर कई दिनों तक रुका करते थे और गंगा कोसी के इस बीच के भूभाग में अलग-अलग जगहों पर कवि सम्मेलनों में भाग लेते या फिर कहीं एकांत में बैठकर साहित्य लेखन में लीन रहते थे. बिहपुर प्रखंड के बभनगामा के साहित्यकार पंडित दामोदर शास्त्री से उनका गहरा लगाव था तो गोपालपुर प्रखंड के सैदपुर गांव के कई लोगों से नेपाली जी का गहरा स्नेह था.

जीवन के अंतिम दिनों में नेपाली जी ने सैदपुर में कविता पाठ किया था, वह सैदपुर के ग्रामीणों को आज भी याद है. 17 अप्रैल को नेपाली जी की मृत्यु भागलपुर स्टेशन प्लेटफार्म नंबर 2 पर हुई थी और इससे ठीक 7 दिन पूर्व 10 अप्रैल को वह सैदपुर में प्रवास कर रहे थे. इतना ही नहीं उनके साथ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी मौजूद थे. पुरानी स्मृतियों में खोकर सैदपुर के कई बूढ़े बुजुर्ग लोग कहते हैं कि वर्ष 1962 में भारत चीन से लड़ाई हार गया था जिसके बाद रामधारी सिंह दिनकर ने परशुराम की प्रतिज्ञा नाम की कविता लिखी थी और गोपाल सिंह नेपाली ने

‘हिमालय की पुकार’ नाम की कविता लिखी थी. दोनों ने बारी-बारी से अपनी अपनी कविताओं से ग्रामीणों को रूबरू कराया. इसके बाद तो कविताओं की झड़ी सी लग गई. एक के बाद एक कविता. सैदपुर गांव के कई ग्रामीणों ने कहा कि वास्तव में वह दिन गांव के लिए ऐतिहासिक दिन था, जिसे सैदपुर कभी भूल नहीं पायेगा.

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