


बिहार पुलिस मुख्यालय भले ही 24×7 न्याय दिलाने का दावा करता हो, लेकिन भागलपुर में यह दावा धरातल पर पूरी तरह फेल साबित हो रहा है। सोमवार की रात किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन ने पुलिस सिस्टम की असलियत उजागर कर दी।
रात करीब 11:10 बजे परवत्ती मोहल्ले के काली मंदिर के पास दो गुटों में मारपीट हो गई। पीड़ित पक्ष की 5-6 किशोरियाँ दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए जब साइबर थाना पहुँचीं, तो वहां मौजूद ऑडी पदाधिकारी ने मामला महिला थाना का बताते हुए उन्हें लौटा दिया।

महिला थाना: ताले में बंद न्याय की उम्मीद
महिला थाना पहुँची पीड़िताओं के सामने बंद दरवाजे और लगा हुआ ताला मिला। करीब 15 मिनट तक फरियादी महिलाएँ गेट के बाहर खड़ी रहीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। थक-हारकर परिजन लौटने ही वाले थे कि तभी अंदर से एक महिला पुलिसकर्मी ने गेट खोला।
सवाल यह है कि अगर वे लौट जातीं, तो उन्हें न्याय कौन दिलाता? और क्या यही है “जनता के लिए 24 घंटे” वाली पुलिस व्यवस्था?

एससी-एसटी थाना: अफसर गायब, होमगार्ड कुर्सी पर पसरे
महिला थाना की हालत तो चिंताजनक थी ही, लेकिन एससी-एसटी थाना में तो स्थिति और भी बदतर निकली। यहां न कोई अधिकारी, न संवेदनशीलता — केवल दो होमगार्ड, वो भी सादी वर्दी में टेबल पर पैर पसारे आराम फरमाते मिले। पूछने पर जवाब मिला, “हम ही ड्यूटी में हैं, केस आए तो थानेदार को फोन कर देते हैं।”
