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“देश के राजनीति में समाजवाद, के एक अध्याय का अवसान”——!

देश के जाने माने सामाजिक न्याय के पुरोधा, भारतीय राजनीति में नैतिक ,सामाजिक व संवैधानिक मूल्यों को स्थापित करने वाले प्रखर समाजवादी नेता डाॅ रघुवंश प्रसाद सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे—–!

उनके असामयिक निधन से भारतीय राजनीति के अलावे पूरे बिहार में शोक की लहर दौड़ गई है। बिहार की राजनीति में एक शून्य  पैदा हो गया है जिसे भरना हमारे लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है——!

 हर आम व खास रघुवंश बाबू के निधन की खबर सुनकर स्तब्ध है।व्यक्तिगत रूप से मैं रघुवंश बाबू के निधन से काफी मार्माहत हूँ——–!

 जब मुझे इस खबर की सूचना मिली तो मैं हैरान रह गया। मुझे तो यकीन भी नहीं हो रहा था कि वह अचानक इतनी जल्दी इस दुनिया को अलविदा कह देंगे—–!

मैं अपनी आंखों से निकलने वाली आंसू की बूंदों को रोक नहीं पाया। अनायास ही आंखों से आंसू छलक पड़ा——!खासकर बिहार ने एक ईमानदार, निष्ठावान,विश्वसनीयता ,सहजता और सरलता के प्रतिक एक ऐसे राजनेता को खो दिया है, जिन्होंने भारतीय राजनीति के वर्तमान परिवेश में  स्वार्थ और राजनीतिक अवसरवादीता एवं संवैधानिक अवमूल्यन के बीच  भारतीय राजनीति में समाजवाद,आदर्शों  और सिद्धांतों के लंबी लकीर खींची है ——–!

यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि–

अब जबकि राजनीति में गिरते मूल्यों के  बीच बड़े बड़े राजनीतिज्ञ अपने कुछ निजी स्वार्थ एवं पद लोलुपता के चलते  एक दूसरे को धोखा देकर दल बदल कर रहे हैं ,वैसे में   रघुवंश बाबू  ने पद लोलुपता और निजी स्वार्थ को ठुकरा कर भारतीय राजनीति के इतिहास में एक नई मिसाल पेश की है——-!

यह आश्चर्यजनक ही  है कि—-

रघुवंश बाबू उच्च वर्ग से संबंध रखने के बावजूद भी समाज के अंतिम पायदान में बैठे गरीब गुरबों, दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों  के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई अंतिम सांस तक लड़ते रहे। 

 वास्तव में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में  जयप्रकाश नारायण,  लोहिया, जननायक  कर्पूरी और चंद्रशेखर जैसे महान समाजवादी नेता के सामाजिक न्याय के सपनों को पूरा करने का अथक प्रयास किया है और सामाजिक न्याय की लड़ाई को उन्होंने आगे बढ़ाया है——!  

-अगर देखा जाए तो वास्तव में जयप्रकाश, लोहिया और जननायक कर्पूरी के सच्चे अनुयाई डॉक्टर रघुवंश ही  थे।

-90 के दशक में जब लालू यादव राजनीतिक चरमोत्कर्ष पर थे तो उस समय भी और जब वर्ष 2000 के बाद लालू यादव  की छवि राजनीतिक पराभव की ओर था, तो  ऐसे में वे शुरू से अंत तक राष्ट्रीय  जनता दल में रहकर लालू यादव के साथ मजबूती के साथ खड़े रहे।  या यूं कहें सुख और दुख दोनों वक्त में डॉक्टर रघुवंश लालू यादव के साथ डट कर खड़े रहे——-!

 रघुवंश बाबू का अपने दल , सिद्धांत और आदर्श  के प्रति निष्ठा,  ईमानदारी  सर्वविदित था।

 यही कारण था कि हर दल में डॉक्टर रघुवंश के इस सिद्धांत के कायल एवं प्रशंसक थे  । हर दल के लोग चाहे वह सत्ता पक्ष के हो या विपक्ष के उन्हें सम्ममान भाव से देखते  थे।

 रघुवंश बाबू शुरू से जमीन से जुड़े नेता रहे थे ।उन्होंने गांव के गरीब गुरबों, दलितों और किसानों मजदूरों  की गरीबी की दर्द  को नजदीक से देखा  और अनुभव किया था ——-!

देश के किसानों गरीबों और पिछड़ों के उत्थान एवं विकास के लिए वह हमेशा तत्पर रहते थे।अपने केन्द्रीय  मंत्रीत्व काल में उनहोंने गरीबों , मजदूरों के   लिए बुनियादी योजनाओं को धरातल पर उतार कर उनके उत्थान का कार्य किया था।  

 यही कारण था कि ऐसे अंतिम पायदान पर बैठे लोगों को सामाजिक न्याय दिलाने का उनका आदर्श गाहे-बगाहे उनके वाणी और भाषणों  में परिलक्षित होता था।  चाहे वह भारतीय संसद में मजदूरों किसानों और गरीबों के लिए उठाया गया मुद्दा हो या सार्वजनिक मंचों पर दिया गया भाषण हो ।उनके भाषणों में खांटी बिहारीपन  और बेबाकी कूट कूट कर भरा हुआ था ।

लोकसभा में संबोधन के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्य उनकी बातों को बड़े गौर से सुनते थे ।

राजनीति के वर्तमान परिवेश में ऐसे कम ही बिरले लोग मिलेंगे जो अपने नफा नुकसान और अपने निजी स्वार्थ की चिंता किए बगैर सच्चाई को बेबाकी से लोगों के सामने रखें——!

एक बार जब किसी विशेष राष्ट्रीय मुद्दे पर सार्वजनिक मंच पर दलीय मर्यादा के परे मीडिया के सामने में उन्होंने अपनी बात कही तो राष्ट्रीय जनता दल के भीतर कई लोगों को उनकी बातें नागवार गुजरी और उन लोगों ने इसकी शिकायत राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव से की तो लालू जी ने कहा—-‐—

“रघुवंश बाबू को बोलने से भला कौन रोक सकता है—? यहां तक की मैं भी नहीं—–!

 आप लोग उनकी बातों को बुरा नहीं माने, अगर वे कुछ बोल भी रहे हैं तो उसमें दल और हम लोगों के प्रति उनकी निष्ठा छुपी हुई है।

  • इसी बात से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि डॉक्टर रघुवंश प्रसाद सिंह का राजनीति में कितना बड़ा कद था। यही कारण था कि बिहार सहित देश के बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियां उनको अपने पाले में लाने के लिए हमेशा से ललचाई नजर से देखा करते थे——-!

 इस दौरान राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें कई ऊंचे पदों का प्रलोभन दिया गया ।मगर अंत तक उन्होंने अपने विचारों आदर्शों और सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।यह आज के राजनीतिज्ञों के लिए प्रेरणा और आइना के समान है। 

 आज देश ने खासकर बिहार ने एक महान राजनेता को खो दिया है —–!

यह हमारे लिए अत्यंत दुख की बात है——-!

 रघुवंश बाबू अब आप हमारे बीच नहीं रहे, मगर आप हमेशा हमारी यादों में रहकर प्रेरणास्रोत बने रहेंगे–‐–! बिहार की धरती सदैव  आपका ॠणी  रहेगी——!

 मैं व्यक्तिगत रूप से अपनी ओर से रघुवंश बाबू को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं एवं शत-शत नमन करता हूं————!

लेखक परिचय:–

स्वतंत्र पत्रकार, सह संवाददाता, दैनिक भास्कर, नवगछीया, रंगरा। 

सम्प्रति महाबीर सिंह मदरौनी इन्टरस्तरीय विद्यालय चापरहाट में अंग्रेजी विषय के अध्यापक के पद पर कार्यरत। 

 नाटककार , नाट्यकर्मी,  निर्देशक-बजरंग नाट्यकला अंग सांस्कृतिक लोक मंच(राज्य कला संस्कृति विभाग से पुरस्कृत) डुमरीया, गोपालपुर, भागलपुर।   

मो0नंबर- 7561960381 

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