रमजान में रोजा-नमाज और कुरआन पढ़ने के साथ जकात और फितरादेने का भी बहुत महत्व है। जकात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है। इस संबंध में रंगरा चौक प्रखंड के सधुआ के मुफ्ती मु. मकबूल हुसैन कहते हैं कि फितरा और जकात क्या होता है आइए जानते हैं फितरा और जकात क्या होता है
क्या है जकात (दान)
इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी बताया गया है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे जकात कहते हैं. यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है।
यूं तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है, लेकिन ज्यादातर लोग रमजान के पूरे महीने में ही जकात निकालते हैं। इस महिने में इसका सवाब ज्यादा होता हैं। मुसलमान इस महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आकलन करते हैं और उसमें से 2.5 फीसदी दान करते हैं। असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है. यह जकात खासकर गरीबों, विधवा महिलाओं, अनाथ बच्चों या किसी बीमार व कमजोर व्यक्ति को दी जाती है।जकात के बारे में पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया है, ‘जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते हैं, उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होती है, बल्कि धरती और जन्नत के बीच में ही रूक जाती है।’
क्या है फितरा
फितरा वो रकम होती है जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं. ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है। इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की साधन संपन्न के साथ ईद भी मन जाती है। फितरे की रकम भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों और सभी जरूरतमंदों को दी जाती है। इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है।