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रंगरा – मध्य विद्यलाय रंगरा में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा बीते मंगलवार से लेकर आगामी शनिवार तक पांच दिवसीय श्रीरामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है. कार्यक्रम का शुभारंभ स्वामी शुक्रमानंद जी महराज एवं नारायण झा (शिक्षक) रमेश चंद्र सिंह, अरविंद ठाकुर, सुभाष मोदी पुलकित पासवान, अशोक मोदी तथा युवा परिवार सेवा समिति के उपस्थित सभी सदस्यों ने प्रज्वलित कर किया. कार्यक्रम के प्रथम दिन संस्थान के संस्थापक एवं संचालक सतगुरु सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य स्वामी शुक्रमानंद जी ने रामचरितमानस कथा वाचन करते हुए कहा कि भगवान श्रीराम का चरित्र हमारे मानस में कैसे उतरे ? उनके जैसे आदर्शवान व चरित्रवान हम कैसे बनें ?

हम त्यागपूर्ण व मर्यादित जीवन कैसे जियें ? तथा मोह व अवसाद ग्रस्त अर्जुन जैसे शिष्य ने ऐसी कौन सी विद्या हासिल की इसके द्वारा उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर समाज को दुराचार व भ्रष्टाचार से मुक्त करवा पाता है। मानव जो परमात्मा का सर्वोच्च कलाकृति है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा कि ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’ क्या आज समाज में कहीं से भी मानव सर्वोच्च नजर आ रहा है नहीं, क्यों? क्योंकि मानव अपनी वास्तविकता से बहुत दूर हो गया है भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए यह सर्वोच्च कलाकृति सब कुछ करने के लिए तैयार है लेकिन लिप्सा प्राप्ति के बाद भी अशांत वह दुखी नजर आता है, क्योंकि सिर्फ भौतिक संसाधनों में वास्तविक सुख नहीं है. महापुरुषों ने इसे मृग मरीचिका यानी रेगिस्तान की रेत पर जब सूरज की किरणें एक प्यासे को पानी की आभास करा देती है तथा पीछे भागने पर मजबूर कर देती है. उसी प्रकार मानव भी दुनियावी सुख में असली सुख की तलाश करता है, जो संभव नहीं है. अंततः मृग की तरह झुलस कर अतृप्त ही प्राणांत करता है. उन्होंने कहा कि मानव की श्रेणी को वही प्राप्त करता है जो मानवीय है कर्तव्यों को पूरा करता है.

जिसे तुलसीदास जी ने कहा साधन धाम मोक्ष कर द्वारा यानी मानव का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है. तभी वास्तविक सुख की प्राप्ति संभव है. जिस प्रकार मछली जल रुपी आधार से विलग होकर सांसारिक सारे साधनों में शांति का अनुभव नहीं करती. उसी प्रकार मनुष्य का आधार भी परमात्मा है जो साध्य है और साध्य देखे बिना सांसारिक साधनों में वास्तविक शांति का एहसास नहीं हो सकता. कार्यक्रम के अंत में साध्वी संजू भारती जी ने प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर को प्राप्त करने का आह्वान किया. ईश्वर प्राप्ति ही मनुष्य का वास्तविक कर्म है अन्यथा शास्त्रों में तो आहार, निद्रा, भय, मैथून आदि क्रियाओं को करने वाले मनुष्य को पशु की श्रेणी में ही रखा है. कार्यक्रम में साध्वी सुश्री खुशबु भारती, सुश्री निगम भारती आदि ने सुमधुर भजनों को गाया, तथा गुरुभाई श्याम जी, गायक श्री उमेश भारती, धीरज ने भजनों को तालाबद्ध किया गया.

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