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बिहार कृषि विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित बिहार किसान मेला में शामिल हो कर खुशी हो रही है. बिहार का यह क्षेत्र दानवीर कर्ण की राजधानी अंग देश के रूप में विख्यात रहा है. प्राचीन भारत का विश्व विख्यात शिक्षा केंद्र विक्रमशिला विश्वविद्यालय यहीं अवस्थित था. किसान मेला लोक शिक्षण का एक सशक्त माध्यम है. जिसके द्वारा किसानों एवं कृषि में संबद्ध कार्यों से जुड़े अन्य लोगों को कृषि की उन्नत तकनीकों, विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों एवं यंत्रों की जानकारी और उनका उपयोग करने की प्रेरणा मिलती है. इस विशाल मेले में सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा लगाये गये 150 से अधिक स्टॉल के माध्यम से किसानों को जागरूक करने के अतिरिक्त उन्हें कृषि के नवीनतम तकनीकों से अवगत कराया जा रहा है. स्टॉल का निरीक्षण करने के दौरान यहां के किसानों ने उत्पादों की प्रदर्शनी और यहां के वैज्ञानिकों के नवाचार और नई तकनीक का अविष्कार देख कर अभिभूत हूं. श्री खां ने कहा कि इससे उन्हें इस बात का विश्वास हुआ है कि हमारे लोगों में अपार क्षमता है.

बिहार के किसान बहुत मेहनतीं हैं, प्रकृति की हमारे उपर मेहरबानी है, जमीन उपजाउ है. हम निश्चित तौर पर आज जिनता भी उत्पादन कर रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा उत्पादन करने की हमारे अंदर क्षमता है. मुझे विश्वास है कि आने वाले सालों में किसान और ज्यादा उत्पादन करने में सक्षम होंगे. हमारे देश में दो वर्ग ऐसे हैं जिस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. एक वो जवान, जो हमारे देश की सीमाओं पर बहुत विषम परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हैं, वे रातों को जागते हैं ताकि हम अच्छी नींद ले सकें. दूसरे हमारे किसान जो हमारे अन्नदाता हैं. हम जो भी प्रगति कर सकते हैं, करेंगे. वह इस पर निर्भर करती है कि हमारे किसानों के हालात कैसे हैं, उनकी स्थिति कैसी है. प्रधानमंत्री जी बार बार कहते हैं, हमें नई तकनीक, नवाचार, अच्छे बीज, अच्छी सुविधाएं दे कर, ऐसी परिस्थिति पैदा करनी है, जिससे हमारे किसानों की आमदनी बढ़ती चली जाय और उनके जीवन स्तर में सुधार आ सके. यहां आ कर विश्वास होता है कि हमारे वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री के आह्वान को गंभीरता से लिया है.

हमारे देश में कृषि का इतिहास नौ से दस हजार वर्ष पुराना है. मेहरगढ़ नाम की जगह बलुचिस्तान में है जो 1947 तक भारत का हिस्सा था. वहां पर जो अनुसंधान के कार्य हुए हैं, खोदई हुई हैं. उसमें जो अनाज के बीजों के अवशेष मिले हैं वे नौ से दस हजार वर्ष पुराने है. दुनियां में ऐसे भी समाज थे, आज भी है, जहां की भूति खेती के लायक नहीं है. वो पशुपालन से लेकर और बहुत सारे काम करते हैं. लेकिन इस देश की जमीन हमेशा से सोना उगलती है. क्योंकि हमारे किसान बहुत मेहनती हैं.

वर्तमान परिदृश्य में कृषि क्षेत्र की चुनौतियों के समाधान हेतु राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2010 में जब इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी तो उसका उद्देश्य ही था कि अपने किसानों के लिए कैसे अनुकूल परिस्थियां पैदा कर सकते हैं. यहां आ कर मुझे मालूम हुआ कि पहली बार संकर प्रभेद के आम को विकसित करने हेतु अनुसंधान का कार्य सबौर में शुरू हुआ और कृषाशंकर और महमूद बहार नाम से दो आम की प्रजातियां किसानों तक पहुंची.

सबौर मुख्यालय में उन्नत वृक्षों की नर्सरी स्थापित की गयी है जहां दो से तीन लाख कलमी पौधे तैयार करके किसानों को उपलब्ध कराये जाते हैं. कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में किसानों को होने वाली व्यवहारिक कठिनाईयों के समाधान हेतु इस विवि द्वारा विकसित की गयी 71 कृषि तकनीकों के व्यवहार से किसानों को लाभ हुआ है. जैव प्रद्योगिकी के माध्यम से फसल सुधार को प्रोत्साहित करने के लिए विवि द्वारा राज्य की प्रमुख फसलों का सूखा प्रतिरोधी और बायो 45 प्रभेद भी विकसित किया गया है.

खरीफ फसलों के रूप में भी बड़े पैमाने पर हो मक्के की खेती

मक्का बिहार की प्रमुख खाद्यान्न फसल है और इसका उत्पादकता बिहार में राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है. इसके उत्पादन में शंकर बीजों की बड़ी भूमिका है. हमारे राज्य में रवि मौसम में मक्के की उपज अधिक होती है लेकिन खरीफ मौसम में किसान इसकी खेती से बचते हैं. इसलिए विश्वविद्यालय को संकर मक्का के प्रभेद को विकसित करने का प्रयास करेंगे.

80 फीसदी मखाना भारत में पैदा होता है और भारत में पैदा होने वाले मखाना का 80 फीसदी केवल बिहार उत्पादित करता है. खुशी है कि इस विवि द्वारा मखाना के उन्नत प्रभेद को विकसित करने से राज्य के हजारों मखाना किसानों की आमदनी बढ़ रही है. भारत सरकार द्वारा 2025 में मखाना विकास को अनुशासित स्वरूप में काम करने के लिए बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना का प्रावधान किया गया है.

राज्यपाल ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा इस विश्वविद्यालय को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर मिलेट्स, बाजरे पर उत्कृष्ट कार्य करने के लिए चुना गया है. मुझे विश्वास है कि यह केंद्र अन्न के उन्नत तकनीकों को विकसित करके उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा.

प्रसन्नता का विषय है कि राज्य की सांस्कृति और पारंपरिक परिसंपत्तियों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए इस विवि ने किसानों के सहयोग से पांच कृषि उत्पादों भागलपुर का कतरनी चावल, जरदालू आम, शाही लीची, मगही पान और मिथिला मखान के लिए जीआई टैग प्राप्त किया है. इस तरह का प्रयास राज्य की विरासत को कृषि विपणन से जोड़ने और वैश्विक पटल पर जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा. मुझे पूरा विश्वास है कि यह विश्व विद्यालय आगे भी इस तरह का काम करती रहेगी.

जीवन का मंत्र कर्म ही पूजा है को अंगीकार करते हुए विश्वविद्यालय ने कर्म ही पूजा है और काम करो मुस्कराते हुए, हंसते हुए, इसको कार्य पद्धति का सिंद्धांत बनाया है. इसके लिए एक ट्रेड मार्क विकसित किया गया है. भारत सरकार की संस्था द्वारा इस ट्रेड मार्क को पंजीकृत कर लिया गया है.

भारत सरकार की एनआईआरएफ रेंकिंग में पूरे देश में 36वां स्थान प्राप्त हुआ है. भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा इस विवि में फार्म मशीनरी टेस्टिंग सेंटर की स्थापना की गयी है. इससे राज्य में उच्च गुणवत्तायुक्त कृषि यंत्रों के जांच का कार्य जल्द ही सुगमता पूर्वक होगा.

बिहार सरकार द्वारा यहां पर संचालित जलवायु अंतर्गत कृषि कार्यक्रम द्वारा कृषि निर्णय समर्थन प्रणाली की प्रयोगशाला की स्थापना एक स्वागत योग्य कदम है. इसके माध्यम से आठ हजार से अधिक पंचायतों के किसानों को मौसम आधारित कृषि परामर्श सेवा का लाभ मिलने की उम्मीद है.

राज्य के युवाओं को उद्यामिता के लिए जागरूक करने और उन्हें स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए उद्देश्य से भारत सरकार के सहयोग से बीएयू में स्थापित इनक्युबेशन सेंटर में 97 स्टार्टअप को तकनीकी कौशल के साथ 630 लाख रुपये का वित्तीय सहयोग प्रदान करना स्वागत योग्य कदम है. इस सेंटर को राज्य स्तर की रैंकिंग में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है.

बीएयू के क्षेत्राधिकार के 22 जिलों के 110 गांवों में जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों का खेतों में प्रयोग तथा प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों का कौशल उन्नयन कार्य बेहद उपयोगी है. इससे उत्पादन की लागत कम होगी और किसानों की आमदनी बढ़ेगी.

बीएयू द्वारा कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालयों को अंगीकृत करके बालिकाओं को कृषि से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है. इसके अंगीभूत कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा 2.6 लाख से ज्यादा किसानों को जागरूक एवं प्रशिक्षित भी किया गया है.

विवि और केविके के माध्यम से बिहार कौशल विकास मिशन के तहत 2024 में विभिन्न विषयों में 82 कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से 2460 प्रशिणार्थियों को रोजगार सृजन के लिए प्रशिक्षित किया गया है.

राज्य के कृषि विकास में आधुनिक तकनीकों के समावेश के क्रम में बिहार में पहली बार राज्य के 28 युवाओं को ड्रोन संचालन के लिए प्रशिक्षित किया गया है. ये युवा किसानों के खेतों पर ड्रोन की मदद से कृषि उत्पादनों पर आकाशीय छिड़काव कर रोजगार का सृजन करेंगे.

सुदूरवर्ती किसानों को खेती की नवीनतम तकनीकों की जानकारी उपलब्ध कराने तथा कृषि संबंधी समस्याओं का समाधान कराने के लिए बीएयू द्वारा कृषि ज्ञान वाहन का संचालन किया जा रहा है. किसानों के सामाजिक आर्थिक स्तर में सुधार के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कृषि विकास के लिए अनेक योजनाओं का संचालन किया जा रहा है. हमारे यहां कृषि को एक सम्मानजनक व्यवसाय माना गया है और एक कहावत भी है कि ,उत्तम खेती मध्यम बान अधम चाकरी भूख निदान…

हमारे संस्कृतिक परंपरा में अन्न की महिमा बार बार वर्णित की गयी है. किसान हमारे अन्नदाता है, हमारा पेट भरते हैं और पीएम उनकी आमदनी को दूनी करने की बात करते हैं इसलिए कई योजनाएं भी बनी.

जैविक खेती पर बल

हमारे ग्रंथो में ऋषि खेती का उल्लेख है. यह खेती भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाये रखते हैं. प्राकृतिक खेती में रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करके आसानी से उपलब्ध होने वाले प्राकृतिक तत्वों तथा जीवाणुओं का उपयोग करके खेती की जाती है. रसायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटती है. यह प्रसन्नता की बात है कि राष्ट्रीय शिक्षा निति 2020 में प्राकृतिक खेती को नये कोर्स के रूप में जोड़ा जा रहा है. फसलों के उत्पादन और फसल चक्र पर जलवायु के दुष्प्रभाव को रोकना आज की बड़ी चुनौती है. मुझे उम्मीद है आज के कृषि वैज्ञानिक इस दिशा में ठोस पहल करेंगे.

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