ऋषव मिश्रा ‘कृष्णा’, मुख्य संपादक , जीएस न्यूज
-नवगछिया में संतमत की नींव बड़ी गहरी है. इसका श्रेय परमहंस स्वामी महर्षि मेंही दास जी को जाता है. खासकर नवगछिया के रंगरा, इस्माइलपुर, गोपालपुर में कई ऐसे गांव हैं जो संतमत के अनुयायियों और महर्षि मेंही परंपरा के संतों के नाम से है. महर्षि मेंही की जन्मस्थली मधेपुरा और कर्म स्थली कटिहार रहने के कारण अपने शुरुआती समय से ही उनका नवगछिया से गहरा लगाव था. नवगछिया में कई सगसंग मंदिरों की स्थापना उनके जीवनकाल में ही हुआ है. यही कारण है यहां संतमत की उपस्थिति कणकण में है. नवगछिया को पहली बार संतमत के वार्षिक अधिवेश की मेजबानी करने का सौभाग्य वर्ष 1994 में मिला. उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रासद यादव ने भी उक्त आयोजन में शिरकत की थी. लगभग 28 वर्षों के बाद समय का पहिया घूमते हुए एक बार फिर नवगछिया आ गया और यहां के लोगों को एक बार फिर से इस महाधिवेशन की मेजबानी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है.
गुरु की अनुभूति का शब्दों में बयान करना संभव नहीं
पूर्णियां श्रीनगर की वृद्धा श्यामा देवी ने कहा कि वे महर्षि मेंही के जीवन काल में ही सतसंग से जुड़ी थी. वृद्धा ने कहा कि कई बार उन्हें महर्षि मेंही का सानिध्य मिला, वे उनके प्रवचनों को भी सुनी हैं. उनके जब पूछा गया कि गुरु के सानिध्य का कैसा अनुभव था, तो वे कुछ पल रुक गयी, उनकी आंखों की संवेदना शून्य हो गयी, तभी वृद्धा ने उत्तर दिया, गुरु की अनुभूति वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती. सतसंग में आने का कारण पूछा गया तो वृद्धा ने कहा, सद्गुरु की जीवंतता का एहसास ही उन्हें यहां खींच लाया है. गंवई दिखने वाली महिला साधोपुर की विमला देवी से जब पूछा गया कि सत्संग से घन हासिल हो सकता है क्या, तो वृद्धा ने कहा, सतसंग से घन नहीं परमधन की प्राप्ति होती है.