शिव महापुराण कथा महंत सिया वल्लभ शरण महाराज जी तो मत्स्य महापुराण की कथा का वाचन कर रहे डॉ० श्रवण जी शास्त्री
नवगछिया- बड़ी घाट ठाकुरबाड़ी में आयोजित एकादश अभिषेकात्मक महारूद्र यज्ञ के छठे दिन शिव महापुराण कथा कहते हुए महंत सिया वल्लभ शरण महाराज जी श्री ने बताया कि शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में.
त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। वहीं शाम की मत्स्य महापुराण की कथा का वाचन करते हुए डॉ० श्रवण जी शास्त्री कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य के अंदर तीन प्रकार के गुण होते हैं सतो गुण, रजो गुण एवं तमो गुण जिस मनुष्य के अंदर सतो गुण की प्रधानता होती है। वह सात्विक विचारों का होता है। जिस मनुष्य के अंदर रजो गुण होता है वह विलासी प्रवृत्ति का होता है एवं जिस मनुष्य के अंदर तमो गुण की प्रधानता होती है वह तामसी विचार का होता है।
वहीं दूसरी तरफ दिन के अभिषेक में विश्वम्भर गुप्ता, प्रशांत गुप्ता, प्रीति झा, राम बालक यादव, मीठ्ठू सिंह, दुर्गा कुमारी, श्रवणे भगत ने सपरिवार भाग लिया। मौके पर शिव महापुराण के मुख्य यजमान कुमार मिलन सागर, मत्स्य महापुराण के मुख्य यजमान विश्वास झा सपत्नीक शिखा कुमारी, अध्यक्ष त्रिपुरारी कुमार भारती, सचिव प्रवीण भगत, मंच व्यवस्था प्रमुख अजीत कुमार, पं० वैदिकाचार्य ललित झा, पं० अविनाश मिश्रा उर्फ जैकी बाबा, कार्यालय प्रभारी कृष्ण भगत सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रही।