पटना सहित राज्य के अन्य शहरों के गंदगी से बजबजाते नाले आने वाले दिनों में सीधे गंगा में नहीं गिरेंगे। पहले उनका मौके पर ही जैविक ढंग से ट्रीटमेंट किया जाएगा। ऐसा ही व्यवस्था सामुदायिक और मोबाइल शौचालयों से निकलने वाली सीवेज की गंदगी के लिए भी होगी। शहरी निकाय अभी इस गंदगी को किसी नाले-नाली या दूसरे जलस्त्रोत में सीधे बहा देते हैं। इन सबकी रोकथाम के लिए विशेषज्ञ एजेंसी के चयन की प्रक्रिया चल रही है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) जल और वायु प्रदूषण को लेकर बेहद गंभीर है। वो लगातार राज्यों को सीवर की गंदगी को नदियों और दूसरे जलस्त्रोतों में बहाए जाने की रोकथाम के लिए निर्देश जारी कर रहा है। इसी क्रम में नमामि गंगे के तहत राज्य में गंगा किनारे बसे शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाए जा रहे हैं।
उन्हें घरों से जोड़ने को भी लाइन बिछाई जा रही है। इस पूरी प्रक्रिया में अभी काफी समय लगेगा। मगर हर जगह एसटीपी बनाया जाना संभव नहीं है। राज्य का कोई ऐसा शहर भी नहीं है जहां सीवर लाइन का जाल बिछा हो। ऐसे में नालों के जरिए सारी गंदगी सीधे गंगा और दूसरी नदियों में गिर रही है। वहीं शौचालयों से निकलने वाली सीवर की गंदगी (सीवेज) को भी निकायों के या प्राइवेट सफाईकर्मी जहां-तहां फेंक देते हैं।
एनजीटी के निर्देश पर अब राज्य में इन नालों और सीवेज का मौके पर ही ट्रीटमेंट करने की व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए नगर विकास एवं आवास विभाग एजेंसी चयन कर रहा है। चार कंपनियों ने इस काम में रुचि दिखाई थी मगर उनमें से दो तकनीकी अर्हता के मोर्चे पर ही पिछड़ गईं। बाकी दो में से एक एजेंसी का चयन होना है।
कई विधियों से होता है नालों का जैविक उपचार
गंगा में गिरने वालों नालों की सफाई के लिए किए जाने वाले जैविक उपचार की कई विधियां हैं। इनमें से एक एरोबिक तकनीक है। इसके तहत नालों में एक निश्चित दूरी पर ईको बायो ब्लाक बनाए जाते हैं। इसमें 20 से अधिक प्रकार के जीवाणु होते हैं। इन ब्लाक के ऊपर से ज्यों ही गंदा पानी निकलता है, वे जीवाणु सक्रिय होकर गंदगी को साफ कर देते हैं। इसके अलावा कई अन्य बैक्टीरिया, पौधों और पत्थरों की मदद से भी बायो ट्रीटमेंट या जैविक उपचार किया जा रहा है। पुराने समय भी नालों के किनारे केना के पेड़ लगाए जाते थे ताकि वे गंदगी को साफ कर सकें।