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देश की आजादी के 75 साल हो चुके हैं. पूरा देश आजादी के अमृत काल का जश्न मना रहा है. ऐसे में आजादी के लिए अपना बलिदान देने वाले शहीदों और वीर सेनानियों की गौरवगाथा को याद किया जाना बेहद जरूरी है. यूं तो भागलपुर जिले के मदरौनी गांव को स्वतंत्रता सेनानी की धरती कहा जाता है. मदरौनी गांव के कई युवा आज भी सेना में हैं. इस गांव की सुबह सेना की तैयारी कर रहे युवाओं के कदमों के थाप से शुरू होती है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेज़ी हुकूमत को उसकी औक़ात बताने के लिए महज 10 साल की उम्र में एक लड़का अपने साथियों के साथ गांव के समीप रेलवे ट्रैक को उखाड़ कर फेंक दिया. अंग्रेज पदाधिकारी और हुक्मरानों में इस लड़के का ऐसा ख़ौफ़ था की वो नाम सुन कर ही बौखला जाते थे. उस लड़के का नाम था शिवनंदन सिंह. स्वतंत्रता सेनानी स्व. बाबू शिवनंदन सिंह के किस्से आज भी इलाके में लोग बड़ी शिद्दत के साथ सुनते और सुनाते हैं. इलाके के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ 12 साल के शिवनंदन भी गांव से साथियों के साथ झंडा फहराने पटना पहुंचे. जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इससे पहले भी उनकी गिरफ्तारी के लिये अंग्रेजों का लाव लश्कर उनके घर आ धमकता था. उस वक़्त बाबू शिवनंदन सिंह अपने साथियों के साथ दियारा में रात गुजारते थे. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाबू शिवनंदन कई बार जेल गये. जेल से आने पर शिवनंदन सिंह को देखने लोगों का हुजूम जमा हो जाता था. वो हंस-हंस कर अपने शरीर पर पड़े हंटर के दाग लोगों को दिखाते और फिर कहते जबतक आजादी नहीं,तबतक जारी रहेगी लड़ाई. श्री सिंह के साथी बताते थे कि जेल में जब भी शिवनंदन पर गोरे जुल्म करते थे तो वो कहते थे कि एक बार हाथ खोल दो और आमने-सामने हो जाओ फिर पता लग जाएगा तुम कितने पानी में हो. इस दौरान किसी की परवाह किए बिना भारत माता की जय के नारे लगाते और कहते थे कि बहुत जल्द तुम भागोगे. बाबू शिवनंदन सिंह भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के साथ भी जेल में रहे. बाबू शिवनंदन सिंह को चाय बहुत पसंद था वो खूब चाय पीते और पिलाते थे, जिससे आजादी के बाद इलाके में लोग उन्हें चाय बाबू के नाम से जानने लगे. शिवनंदन सिंह की निशानी को उनके पुत्रों निरंजन प्रसाद सिंह, मनोरंजन प्रसाद सिंह, चितरंजन प्रसाद सिंह ने संजो कर रखा है. इन निशानियों में स्वर्गीय सिंह को देश के कई ख्याति प्राप्त स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा लिखे गए पत्र, उन्हें मिला सम्मान पत्र और उनकी डायरी है. शिवनंदन सिंह के पौत्र कहते हैं कि दादा जी की गौरवगाथा और क्रांतिकारी इतिहास हमारे परिवार के लिए सबसे बड़ी पूंजी है.

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