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फेसबुकिया प्यार : पढिये प्रभाकर सिंह की कविता

हिंदी रचनाBarun Kumar Babul0

फेसबुकिया प्यार🙅‍♀️🙅‍♀️🙅‍♀️🙅‍♀️🙅‍♀️🙅‍♀️खुद करनी से अब दूर हुईबद जीने को मजबूर हुई।फेसबुकी पे दो-चार कियामात-पिता को बीमार किया। परिणाम भयानक न जानी थीसूहागिन खुद को मानी थी।हाँ!था सूरज जो ढलने कोमेरा मन ठानि निकलने को। व्याकुल मन अजब व्यवहार कियाचुपके-चुपके से श्रृंगार किया।निशा प्रचण्ड स्तब्ध रूप हुईनिकल के चौखट से दूर हुई। जाते, भूखण्ड निहारी थीउलझन!किसको स्वीकारी थी।तब पग हिल-हिलके चलता थामध रात्रि तम भी मचलता था।चल-चलके थक चूर हुईप्यार जताने,मजबूर हुई। रहता यहीं हाँ छबीला हैयही घर मेरा कबीला है।आग लागी खबर फैली थीभीड में अकेली मैली थी।पूछे!किसको स्वीकार हुईइसमें किससे रे प्यार हुई। था फेक इन्टरोड्यूस कियाफेसबुकी प्यार मनहुस किया।करनी पे खुब पछतायी थीभीडो में जो मुरझायी थी।धन्यवाद। कवि रचनाकार प्रभाकर सिंहकदवा, नवगछिया, भागलपुर। Barun Kumar Babul