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मनीषा बेटी हूँ मैं , पढिये कवि प्रभाकर सिंह की कविता

हिंदी रचनाBarun Kumar Babul0

मनीषा बेटी हूँ मैं।😭😭😭😭😭बेटी जन्मे से आई हूँलोक-लाज को पायी हूँ।व्याथा किसे सुनाऊँ अपनादर्दे समाजो से पायी हूँ।नाजुक थी तब बडे प्यार सेमासूमियत जो बतायी थी।गर्व था अपने जीवन परनारी सर्वोपरि सिखायी थी।मनीषा हूँ मुझे देखो अबदरिन्दों ने खूब नोंचा है।हाँ!परिजन बिन बता जलाकरआँसुऔं तक नहीं पोछा है।शिद्दत से न्याय माँगने जबन्यायपालिका को जाते हैं।दरिन्दों का हि पक्ष मजबूतवहाँ खुद कमजोर पाते हैं।हाँ!अब तो ऐ हदें हुई जोजनाजे पुलिस के कन्धों परपेट्रोल छिडक-छिडक जला दियेश्मशान तक हुआ अन्धो पर।उदासीन हो मेरी चिता पेमुआवजे पाला मत खेलोतनिक शर्म अगर बची हैपैरेवी उसका मत झेलो।घन्यवाद।प्रभाकर सिंहकदवा,नवगछिया, भागलपुर। Barun Kumar Babul